SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय सार्थ सिबि संघ बैंगलौर-दिल्ली हैं। इसी प्रकार नेमिनाथ भगवान के समय का कथन यहां पाया है। इस जाता है और वहां की मिट्टी विषमय बन जाती है ।२२५॥ वर्णन को सुनकर हम अपनी शक्ति के अनुसार उनकी भक्ति करें ।१६६-२००। दोनों नौ-नौ को मिलाने से १८ होता है। कुटकी और शिरीश अर्थात् ऋषभदेव भगवान ने जिस वृक्ष के नीचे खड़े होकर तप किया था उस / शोसम इन दोनों वृक्षों की मिट्टी से लेप करने से मनुष्य निराकुल हो जाते हैं। वृक्ष का नाम जिन बृक्ष है ।२०१। पद्म प्रभु और सुपार्श्वनाथ भगवान ने जिस नाग वृक्ष के नीचे मात्मसिद्धि जिस प्रकार बट वृक्ष अपनी शरण में प्रानेवाले सम्पूर्ण जीवों को को प्राप्त की थी उस वृक्ष के गर्भ में रहने वालो मिट्टी को कुछ रोग को अपनी छाया से शीतल कर प्राश्रय प्रदान करता है उसी प्रकार उसी वृक्ष के निवृत्ति के लिए संजीवनी प्रोषध रूप में उपयोग किया जाता है। नीचे जिनेन्द्र भगवान ने अपनी कामाग्नि को शान्त कर कर्म को निर्जरा करके ।२२६। और ।२२७१ आत्म रूपी शान्त छाया को प्राप्त किया, इसलिये इसको जिन वृक्ष एवं प्रशोक वेलपत्र और नागफण हन दोनों वृक्षों के गर्भ में रहने वाली मिट्टी को वृक्ष भी कहते हैं 1२०२॥ भिन्न-भिन्न रोगों के लिए दिव्य औषध रूप में परिवर्तित करते हैं। उसको यह शरीर रहल के समान प्राधार भूत है । उसको अश्या में उपयोग । चन्द्रप्रभु और पुष्पदन्त जिनेन्द्र भगवान के शिक्षण से अर्थात् गणित के द्वारा कर जैसे नई मात्मा को प्राप्त कर शोक रहित होता है, उसी प्रकार अत्यन्त : समझना चाहिए ।२२८) कोमल सात पत्ते वाले केले के वृक्ष के नीचे तप करके सिद्धि प्राप्त करने के सम्बर वृक्ष अर्थात् बोड़ो बांधने के पत्तों का वृक्ष और पलाश का वृक्ष कारण उसका नाम अशोक वृक्ष पड़ा । तब उनका नरभब फलीभूत हुआ।२०३1 इन दोनों की मिट्टी भी उपरोक्त विधि के अनुसार निकाल लेनी चाहिए। इस शालमली वृक्ष के नीचे संभव नाथ तीर्थंकर ने तपस्या की थी इसलिये! को विधि शीतलनाथ भगवान के कहे के अनुसार समझनी चाहिए ।२२६॥ इसको भी अशोक वृक्ष कहते हैं। यह अशोक वृक्ष देवतागों के द्वारा भो । इसी प्रकार तेन्दु वृक्ष और इस वृक्ष के नीचे गिरे हुए पत्तों को मिलाने बंदनीय है ।२०४॥ से महापौषधि बनती है। इसकी विधि श्री श्रेयांसनाथ तीर्थकर के गणित से नोट-श्लोक नं० २०५ से लेकर इलोक नं. २२३ इलोकों तक विवेचन । । जाननी चाहिए २३० हो चुका है। सूखा हुमा सरल [षदारू] करोड़ों वृक्षों के गरिणत और उनके गुणों इसी प्रकार पाटली वृक्ष और जम्बू वृक्ष इन दोनों की मिट्टी से पौषधि को जिन्होंने बताया है उन अभिनन्दन और सुमतिनाथ भगवान को नमस्कार बनाने की रीति को वासुपूज्य पौर विमलनाथ तीर्थंकर के गणित से जाननो करते हैं।२२४० चाहिए ।२३१॥ जिस वृक्ष के पोल अर्थात् तने में सर्प रहता है उस वृक्ष को नामवृक्ष अश्वत्य और दधिपणं इन दोनों वृक्षों के गर्भ से मिट्टी को प्राप्त करने कहते हैं। उस झाड़ को काटते समय नीचे के हिस्से मात्र का काटकर जब की विधि को अनन्तनाय और धर्मनाथ तीर्थंकर भगवान के परिणत से जाननी उसमें सर्प दिखाई पड़ जाय तव उम वृक्ष को काटना बंद कर देना चाहिए। चाहिये ।२३२१ अगले दिन जब यह सर्प निकलकर दूसरी झाड़ी में चला जाए तब उस वृक्ष नन्दी और तिलक इन दोनों वृक्ष की मिट्टी को निकालने की विधि को काट देना चाहिए । जहाँ पेड़ के पोल में सर्प रहता है उसके सिर के भाग शांतिनाथ और कुथनाय भगवान के गरिणतों से समझनी चाहिए। की मिट्टी बहुत नरम होती है । बह मिट्टी अनेक दवाइयों के काम में भाती है। प्राम, ककेली इन दोनों वृक्षों के गर्भ में रहने वाली मिट्टी को विधि पदि सर्प को इस प्रकार न हटाया जाय तो वह रूपं वहीं घोट करके मर को मुनिसुव्रत और नमिनाथ तीर्थंकर के गणित से समझनी चाहिए।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy