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________________ सिरि भूवनय मर्थ सिद्धि संघ बैंग रोग.किल दया धर्म के सूक्ष्मप्रतिसूक्ष्म. से लेकर बहद- पर्यन्त दान देने को हैं। उन समस्त सम्पदाओं को प्राप्त करके है बेटी ब्राह्मी देवी । ६४ मंक को अनन्त दान कहते हैं । उसे बतलानेवाला यह भूवलय है । ४६। लेकर तुम सुखी हो जामो, ऐसा श्री दृषभनाथ भगवान ने अपनी पुत्री से उपदेख यह अनन्त दान समस्त मानवों की कीर्ति स्वरूप है ।५०। रूप में कहा । स्नेह, पूर्ण पिता जो का शुभाशीर्वाद सुनकर ब्राह्मी देवो परम दान के स्वरूप को बतलानेवाला यह ग्रन्थ जैनागम का दर्शन शास्त्र प्रसन्न हुई ।५७। है।५।। उपयुक्त ६ अंक किस प्रकार निकलकर आ जाता है, ऐसा अपने पूज्य इस पृथ्वी में रहनेवाली समस्त जनता को यह दान क्रमशःप्रानन्द प्रदान । पिता जी से कुमारी सुन्दरी देवी के प्रश्न करने पर उन्होंने उत्तर दिया कि करनेवाला है ।। ये समस्त एक, दो, तीन, चार, पांच, छ, सात, पाठ और नौ इन अंकों को .. इस रीति से दानमार्ग को चलाने में यह भूवलय ग्रन्थ अद्भुत अचिन्दय ।५। है।५३) ____ दान किये हुए देव अपने दाहिने हाथ के अंगूठे के मूल से श्री सुन्दरी विवेचनः देवी के बायें हाथ की अमृतांगुली में 1५६ भूवलय के दानमार्ग प्रवर्तन का क्रम इस प्रकार है: लिखे हुए अंकों द्वारा सुन्दरी देवी ने एमोकार मंत्र को जान लिया। १-आहार २-अभय ३-औषधि तथा ४-शास्त्र इन चारों को मुख्य बताया | उस विमलांक रेखा के आदि, अन्त और मध्य में रहनेवाले सम, विषम और है। इन चार प्रकार के दानों में ज्ञान दान की प्रधानता इस अध्याय में रहती है। । मध्यम स्थान को भी उसने अपनी सूक्ष्म बुद्धि द्वारा जान लिया । और ज्ञान अक्षर रूप रहता है। वे ज्ञानात्मक अक्षर यदि लिपि रूप से बन! इसी रीति से सुन्दरी देवी ने निर्मल आम्यन्तरिक स्वरूप को भी जान:: जाय तो उपदेश देने लायक बन जाता है । इसलिए लिपि की उत्पत्ति के क्रम ! लिया ।६१। को आचार्य बतला रहे हैं: इन सभी को क्रम-बद्ध करनेवाला योग है और सुन्दरी देवी ने उसे भी ब्राह्मी देवी ने अपने पिता श्री आदिनाथ भगवान से पूछा कि हे पिता । जान लिया । ६२॥ जी! लावण्यरूपी अक्षर की लिपि कैसी रहती है ? ऐसा प्रश्न करने पर यह योग सम, विषम, उभय, तथा अनुभयादि विविध मेद से विद्यमान मगवान ने कहा कि सुनो वेटी! अब हम भगवान की दिव्य ध्वनि को रहता है ।६३। तुम्हारे नाम से अक्षर ब्राही में कहते हैं ।१४। इसी रीति से निर्मल अन्तर को रेखा भी विद्यमान रहती है 1६४) दिव्य ध्वनि जय घंटे के नाद के समान निकलती है । वह सभी ॐ के ! अन्तर में रहने वाली सभी रेखानों को क्रम बद्ध करने के अनेक भाग अन्तर्गत है। इस दिव्य ध्वनि का प्राद्यक्षर "अ" से लेकर अन्तिम :: तक ६४ | रहते हैं ।६५॥ अक्षर हैं। १ सम विषमांक भावों को निकालनेवाला है ।६६। अंक की गणना करने से है (नव) पद भक्ति मिल जाती है । वहीं अत्यन्त निर्मल अंतर सत्य को बतलानेवाला है।६७। अक्षर का अवयव है । श्रावकों को ६४ अंक से उपदेश देनेवाला नवम बन्याए। कर्म बन्द को नाश करने के लिए भागांक को निकालने वाला है।६। जान लेना चाहिए ।५६॥ सम विषमांक गणित को बतलाने वाला है।६६। ऋषि गण जब ध्यान में मग्न रहते हैं तब योग की सिद्धि हो जाती हृदय कमल के अन्तर के सत्य को बतलाने वाला है ७० और योग की सिद्धि हो जाने पर संसार की समस्त सम्पदायें उपलब्ध हो जाती कर्मबन्ध को नाश करने के लिए यह द्वार है।७१
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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