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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संपबंगलौर-दिल्ली भक्ति की आशा रखकर भव्य जन गरिणत शास्त्र के ज्ञान को बढ़ा। समवशरण में भगवान को दिव्य ध्वनि से निकला हमा यह भूवलय लेते हैं । २५१
। काव्य श्री निवास काव्य है ।३४। चौबीस तीर्थंकरों के गुणगान करने से ही समस्त गरिणत शास्त्रों
यह काव्य सम्पूर्ण जगत के लिए यानन्ददायक है ।३५।। का शान हो जाता है ।२६।
इस दिव्य काव्य में किस विषय की कमी है ? अर्थात् किसी की नहीं ।३६। समस्त भाषाओं के समस्त शब्द कोष इस भवलय ग्रन्थ में उपलब्ध
समस्त मङ्गलरूप भद्रस्वरूप को, यह काव्य दिखाता है । ३७॥ हो जाते हैं ।२७
इस मंगल रूप काव्य मो अरहंताणं इत्यादि रूप समस्त मन्त्रों को समस्त दोषों को नाश करने की आशा रखनेवाले भव्य जनों की वांछा
दिखाता है।३८ को योगी जन इस गरिणत शास्त्र द्वारा जान लेते हैं। और एक देश ज्ञान को
इस ग्रन्थ के अध्ययन से योगियों को शुद्धोपयोग मिल जाता है ।३६। सम्पूर्ण बनाने का जो उपदेश देते हैं वह देशी भाषा में रहता है तथा वही यह
यह भूवलय शास्त्र गरिणत विद्या का आनन्द साम्राज्य है।४०। भूवलय ग्रन्थ है ॥२८॥
मोक्ष लक्ष्मी से उत्पन्न मंगलमय सौख्य को प्रदान करनेवाला यह भूवलय अर्हन्त भगवान से लेकर अंक पर्यन्त का अंक तीर्थ स्वरूप है।
काव्य है ।४१॥ उनके दर्शन करने से भव्य जीवों को गणित शास्त्र का विनियोग करने की।
। अनेक युक्ति से मुक्ति लक्ष्मी से प्राप्त होनेवाले सुख का दिखानेवाला विधि मालूम हो जाती है । उसके मालूम हो जाने पर मोक्ष पद प्राप्त करने का
यह काव्य है 1४२। सरल मार्ग भी मिल जाता है ।१६॥
सब शास्त्रों का आदि ग्रन्य योनिपाहुड़ है अर्थात् उत्पत्ति स्थान है। उन उत्तम क्षमादि दस धर्म को भव्य जनों का साधन करने का सत्य धर्म
सब उत्पत्ति स्थानों को दिखानेवाला यह ग्रन्थ है ।४३। है, वही पात्मा का विजयांकुर है । उन्हीं दस घों को ध्यान करते समय स्वयं अर्हतादि नौ पदों की सिद्धि प्राप्त करने में क्या पाश्चर्य है ।३०।
गणित की विधि में सबको क्लेश होता है, यह भूवलय का गणित
शास्त्र ऐसा न होकर आनन्ददायक है।४४। ऐसी विजय को प्राप्त करादेने वाला दस क्षमादि धर्म महानत से प्राप्त होता है । दया, दान इत्यादि सब यात्मिक गुरमों को प्राप्त कराकर नय और
नाट्य शास्त्र में पटविन्यास एक सूक्ष्म कला है, उस कलामय भाव को प्रमाण इन दोनों मार्म को बतलाता है ।३१।
गरिगत शास्त्र में बताने वाला अर्थात् परमात्मा में बतलानेवाला यह भूवलय सामान्य दृष्टि से देखा जाये तो जान एक है, विशेष रूप से देखा जाये।
ग्रन्थ है ।४५॥
गणित शास्त्र और अंक शास्त्र ये दोनों अलग अलग हैं, इन सबका तो पांच प्रकार का है, संख्यात स्वरूप तथा' असंख्यात स्वरूप भी है। इस रीति से ज्ञान को गणित विधि से प्रसारित कर पक रूप से बना ले तो ज्ञान।
स्वरूप दिखानेवाला यह ग्रन्थ है ।४६। साम्राज्य रूपी ध्वज हो जाता है। इस ध्वज को नमिनाथ जिनेन्द्र देव ने। समस्त पृथ्वी अर्थात् केवली समुद्रात गत भगवान के शरीर रूपी फहराया । इसलिए कल्याणकारी हया । इसका नाम आनन्ददायक करण सूत्र विश्व का नापन वाला यह भूवलय अन्य ह ॥४७॥ है । इस करण सूत्र को जिनेन्द्र भगवान ने सिखाया ।३२॥
इस भूवलय ग्रन्थ के अध्ययन करने से ज्ञान रूपो प्रानन्द साम्राज्य की यह भूवलय के ज्ञान के वैभव को बतानेवाला है।३३।
प्राप्ति हो जाती है।४।।