SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस प्रकार भूवलय के अंक और अक्षर पद्मदल ५१०२५००० है इस.७१ अंक राशि में दगी करण करके (अध्याय :-१७ ) 1 इन ग्रंकों को अंक में ५००० मिलाने से समस्त भूवलय को प्रक्षर संख्या हो जाती है, ऐसा परस्पर मिलाकर, परस्परभाग देकर २५ को अंक राशि किया है। इन श्री कुमुदेन्दु ने सूचित किया है। इन सरह ५१०३०००० संख्या का योग प्रतों को बर्ग भाग कर ३५ अभंग करके इस अंक राशि का २, ३, ४, ५, (५+१+o+३+:+o+o+%E) नवम अंक रूप है, वे अंक को ६, ७, ८, १ इस पहाड़े से परस्पर भंग करके अपने काव्यांक को मोती के समान प्रथम करके नवमांक गणित से इस राशि को विभक्त किया गया है। माला में गूचकर काव्य की रचना की गई है। इस बग गरिणत का ६ वर्षक करुणेयोबत्तिप्पत्तेल ।। अहरण गुणवेम तोम दु ॥ प्रशुद्ध घन होने के कारण उत्तर में गलती जरूर मा जाता है। परन्तु कुमुदेन्दु सिरि एक नरिप्प तोम तुम ॥ वरुव महान् कगळारु ।। प्राचार्य कहते हैं कि तुम इसे गलतो मत समझो । हम मागे जाकर इसका खुलासा एरडने कमल हानेरडू । करविङि वेळनन्द कुभ ॥ करेंगे। कुमुदेन्दु प्राचार्य द्वारा कहा हुआ जो गणित है वह हमारी समझ में नहीं अहहन वाणो प्रोम बत्तू ॥ परिपूर्ण नवदंक करग ॥ पाता । उसे स्वयं प्रन्यकारने यागे जाकर स्पष्ट विवेचन के साथ राशि के रूप सिरि सिद्धम नमह प्रोम हत्तु १,६८, ७६ ॥ में बतलाया है। इस तरह वर्णमालांक- अक्षर राशि को तया ६.२७-७१-७२६ संख्या । अध्याय ३ को स्थापित करके ६-१२-७-६ का पूर्ण वर्ग होकर के विभाग कर दिया है। इस अध्याय में कुमुदेन्दु आचार्य ने अपने काव्य की कुशलता का सभी Ext=E१४८१-७७६.xe=६५६१ उस तरह संख्या में पहला अध्याय र रतलाया है। समाप्त हुमा है । इस प्रकार इस राशि के प्रमाण अपुनरुक्त ६ अंक बन जाता । अध्याय ४ इस अध्याय में सम्पूर्ण काव्य ग्रन्थ को तथा अपनी गृरु परम्पराको नवकार मंत्तर दोळादिय सिद्धांत । अवयव पूर्व य ग रन्थ ।। कहकर रस, और रसमरिण की विधि, सुबर्ण तय्यार करने की विधि और दवत्तारादि मवक्षर मंगल । नव अप्रअअअ प्रमअप्र॥ लोह-शुद्धि का विषय अच्छी तरह से वर्णन किया गया है। रस शुद्धि के लिए अनेक पुष्पों के नामों का उल्लेख किया गया है इस अध्याय २ अध्याय में रस मणि के शुद्ध रूप को बतलाते हुएमें वैद्यशास्त्र की महत्ता को पाठकों को अच्छी तरह करणसूत्र गणिताक्षर अंक के समान है" 'क' को मिलाने २६x६०%31 से समझा दिया गया है। कुल ८८ होता है, इस ८८ को मापस में मिलाने से +८-१६ होता है। यह अध्याय ५ १६-१x६- कुल सात होता है। ये सात भंग होकर के इन्हें मंक से भाग करने पर प्राप्त हुए लब्धांक से अपने इस काव्य को प्रारम्भ करते हुए, इस । इसमें अनेक देश भाषाओं के नाम' और देशों के नाम. तथा अंकों के शर्मम्मी कोष्टक को दिया गया है। यहां अनुलोम ग्रंक को ५४ अक्षर के भाग नाम देकर भाषा के वर्गीकरण का निरूपण किया गया है। करने पर जो मंक राशि के एक सूक्ष्म केन्द्र को ८६ अंक राशि रूपनिरूपण अध्याय ६ किया गया है। (अध्याय २, श्लोक १२) इसमें द्वैत, अद्वैत, का वर्णन करते हुए अपने अनेकान्त सत्त्व के साथ इस अनुलोम राशि को प्रतिलोम राशि के उसी ५४ अक्षर वर्ग के तुलनात्मक रूप से वस्तु तत्त्व को प्रतिष्ठा की गई है। इसमें प्राचार्य कमुदेन्दु
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy