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________________ १४ सिरि भूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ बेलौर-दिल्ली इस रीति से भंग करते हुए ६४ अक्षर तक शिक्षण देनेवाला यह गणित तैयार हो जाता है। इसी प्रकार बारम्बार करते जाने से अनेक कक्षापुट निकपते का अंग ज्ञान है अर्थात् द्रव्य प्रमाणानुगम द्वार है ।५१॥ रहते हैं ।६२। यह सूक्ष्मांकरूपी अनुपम भंग है । ५२॥ इन्हीं कक्षों में जगत् के रक्षक अक्षर बन्धों में समस्त भाषायें निकलकर यह अक्षय सुख को प्रदान करनेवाला गणित का रूप है।५३ या जाती हैं । ६३॥ इसी प्रकार यह अनादि काल से शिक्षा देनवाला गरिगत शास्त्र है।५४. यह कक्ष पुटाङ्कन पढ़नेवालों के चक्षु को उन्मीलन करके केवल यह लाख लाख तथा करोड़ करोड़ संख्या को सुक्ष्म में दिखानेवाला क मात्र से ही समस्त शास्त्रों का ज्ञान करा देता है ।६४।। अंक है ।५५॥ शास्त्रों में दर्शन और ज्ञान दोनों समान माने गये हैं। दर्शन में चक्षु दिगम्बर जैन मुनि अहिंसा का साधन भूत अपने बगल में जो पोछी दर्शन व यचक्षु दर्शन दो भेद है। इन दोनों दर्शनों का ज्ञान इस कक्षपुट से हो रखते हैं उसके प्रत्यन्त मूक्ष्म रोम की गणना करने से द्वादशांग वाणी मालूम। जाता है।६५० हो जाती है ।५६॥ यह कक्षपुट विविध विद्याओं से पूरित होने के कारण यक्षों द्वारा संरक्षित विवेचन-श्री भूवलपमेयम स ४. मोर नागान है।६६। सिद्ध का विषय आया है । उन्होंने अपने गुरु देव श्री पूज्यपाद प्राचार्य जी से यह कक्षपुट भूवलय ग्रन्थ के अध्येता के वक्ष : स्थल का हारपदक है कक्षपुट नामक रसायन शास्त्र का अध्ययन करके रसमणि सिद्ध किया था। अथवा भूवलय रूपी माला के मध्य एक प्रधान मरिण है ।६७। उस मणि से उन्होंने गगनगामिनी, जलगामिनी तथा स्वर्गवाद इत्यादि यह भूवलय ग्रन्थ जिस पक्ष में व्याख्यान होता है उसे पराकाष्ठा पर महाविद्या का प्रयोग बतलाकर संसार को प्राश्चर्य चकित कर दिया था। और पहुंचाने वाला होता है ।६। इसी १८ महाविद्या के नाम से ५८ कक्षपूट नामक ग्रन्थ की रनना की थी। उपर्युक्त समस्त विषयों को ध्यान में रखते हुए कमागत गरिणत मार्ग यह समस्त ग्रन्थ "हक" पाहुड से सम्बन्धित होने के कारण भूवलय के चतुर्थ-से दिगम्बर जैन मुनि अपने विहार काल में भी शिष्यों को सिखा सकते हैं 1६६। खएट प्राणावामपूर्व विभाग में मिल जायगा। 1 इस समय यह अद्भुत विषय सामान्य जनों के ज्ञान में नहीं आ सकता। . ये समस्त विद्याय दिगम्बर जैन मुनियों के हृदयङ्गत हैं ।५७। यह सांगत्य नामक छन्द असदृश ज्ञान को अपने अन्दर समा लेने की क्षमता यह समस्त कक्षपुट मंगल प्राभूत से प्रकट होने के कारण खगोल विज्ञान रखता है । और सर्वभाषामयी कर्माटभाषात्मक है। इसलिए यह दिव्य सूत्रार्थ सहित है ।५८० भी कहलाता है ।७०) यह पाहुड ग्रन्थ अङ्ग ज्ञान से सम्बन्ध रखता है ।।६। यव (जौ) के खेत में रहकर अनन्तानन्त सूक्ष्म कायिक जीव अपना जो व्यक्ति दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् जब अपने समस्त जीवन निर्वाह करते हैं। इस रीति से सुविख्यात कर्माट देश एक प्रदेश वस्त्रों को त्यान देता है तब उसे इस कक्षपुट का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।६० होता हुआ भी समस्त कर्माष्टक अर्थात् समस्त विश्व की कर्माष्टक भाषा को इस कमपुट को यदि व्याख्या करने बैठे तो वाक्य तीक्ष्ण रूप से निकलता । अपने अन्दर समाविष्ट करता है ।७१। है, पर ऐसा होने पर भी वह मृदुल रहता है ६१॥ गणित शास्त्र का अन्त नहीं है। किन्तु उन सबको अणुरूप में बनाकर भूबलय को यदि अक्षर रूप में बना लिया जाय तो चतुर्थ खण्ड में एक समय में असंख्यात गुणित क्रम से कर्म को नाश करनेवाली विधि को वह कक्ष पुष्ट निकलता है। उसी कक्षपुट को चक्रवन्ध करने से एक दूसरा कक्षपुट ! बतलाता है ।७२।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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