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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बंगलौर-दिल्ली
हमने ६४ अक्षरों के संयोग से वृद्धि करते हुये अपुनरुक्ताक्षराव रोति । १४ अक्षरांकमय इस भूवलय में है।४।। 'से गुणाकार करके इस भूवलय ग्रन्थ की रचना की है ।२८।।
। इस प्रकार विविध भांति के सौंदर्य से सुशोभित श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य जिस प्रकार षड़ द्रव्य इस संसार में एक के ऊपर दूसरा कूट कूटकर विरचित यह भूवल काव्य है ।४१।। भरा हुआ है उसी प्रकार ६४ अक्षरों के अन्तर्गत अनुलोम क्रम अनादिकाल से दिगम्बर जैन साधुओं ने इन्हों ६४ अक्षरों के द्वारा हो से समस्त भाषायें भरी हुई हैं। संसार में यह पद्धति अद्भुत तथा परम द्वादशाङ्ग वारगी को निकाला था ।४२२ विशुद्ध है । इस भरे हुए अनुलोम क्रम को प्रति लोभ क्रम से विभाजित करने ।
इस प्रकार समस्त गुरुओं का वाक्य रूप यह भूवलय है ॥४३॥ पर संसार की समस्त भाषायें स्वयमेव प्राकार प्रकट हो जाती है ।२६।
किन्तु उन सबको दुःखों से छुड़ाकर सुखमय बनाने के लिए सर्वांक - इसी प्रकार समस्त भाषानों का परस्पर में संयोग होने से सरस ।
सरस अर्थात् ६ तथा सर्वाक्षर अर्थात् ६४ अक्षर हैं । क्षर का अर्थ नाशवान है, किन्तु शब्दागम की उत्पत्ति होती है। तत्पश्चात् ममस्त भाषाये परस्पर में गुथी हुई।
१ जो नाश न हो उसे अक्षर कहते हैं । और एक एक अक्षरों की महिमा अनन्त सुन्दर माला के प्रमान सुशोभित हो जाती हैं और वह माला सरस्वती देवी
गुरण सहित है। इन ६४ अक्षरों का उपदेश देकर कल्याण का मार्ग दिखलाना का कंठाभरण रूप हो जाती है।३०॥
महत्व पूर्ण विषय है। इतना महत्वपुर्ण अक्षर अंक के साथ सम्मिलित होकर उस माला में विविध भांति के पुष्प गुथे रहते हैं। उसी प्रकार इस
जब परम सुक्ष्म बन जाता है तो उसकी महिमा और भी अधिक बढ़ बातो भूवलय ग्रन्थ में भी ६४ अक्षरांक रूपी सुन्दर २ कुसुम हैं।३१॥
है । इसके अतिरिक्त है अंक सूक्ष्म होने पर भी गरिणत द्वारा गुरणाकार करने । यह भूवलय रूपी माला अहंत भगवान् की वाणी को अद्भुत् महिमा
से जब अत्यन्त विशाल बन जाता है तब उसकी महानता जानने के लिए है ।३२।
रेखागम का पाठय लेना पड़ता है। अंकों को रेखा द्वारा जब काटा जाता है यह भूवलय समस्त कर्मबद्ध जीवों की भाषा होने पर भी अर्थात्
तब यह भूबलय परमामृत नाम से सम्बोधित किया जाता है ।४४॥ कर्माटक भाषा की रचना सहित होते हुए भी बहुत सरल है।३३। यह भूवलय परमोत्कृष्ट विविधांक से परिपूर्ण है।३४॥
र ल कूल ये कर्णाटक भाषा में प्रसिद्ध विषय हैं । यह लिपि अत्यन्त यह वृषभ सेनादि सन गण की गुरुपरम्पराओं का सूत्रांक है।३५॥
गोल व मृदुल है । अतः मानद, देव तथा समस्त जीवराशियों का शब्द संग्रह अर्हन्त भगवान् की अवस्था में जो प्राभ्यन्तरिक योग था वह रहस्यमय ।
करने में समर्थ है । वह अनुपम भापा प्राकृत और द्रविड़ है ।४५॥ था, किन्तु उसका भी स्पष्टी करण इस भूवलय शास्त्र ने कर दिया ।३६॥
भाषात्मक तथा अक्षरात्मक भगवान् को दिव्य वाणी रूपी ७१८ । जिस प्रकार पुष्प गोलाकार व सुन्दर वर्ण का रहता है उसी प्रकार भाषाय संसार के समस्त जीबों को मोक्ष मार्ग का उपदेश देनेवाली हैं। और ६४ प्रक्षरांक सहित यह कर्माटक भाया गोलाकार तथा परम सुन्दर है 1३७।
अखिल विनय की रक्षा करती हुई भव्य जीवों को शिक्षा देनेवाली हैं ।४६। इस भूवलय का सांगत्य नामक छन्द अत्यन्त सरल होने पर भी प्रौढ़
यह भगवद् वाणी समस्त जीवों की रक्षा के लिए आदि बस्तु है। विषय गभित है।३।
।४७ अाकाश में गरुह पक्षी के समान गमन (उडान) करना एक प्रकार यह अक्षयानन्तात्मक वस्तु है ।४८ की ऋद्धि है किन्तु वह भो इस भूवलय में गर्भित है ॥३६॥
यह था अक्षर का द्वितीय भंग है।४।। कामदेव के शरीर में जितना अनुपम सौंदर्य रहता है उतना ही सौंदर्य यह आ २ (प्लुन) अक्षर का तृतीय भंग है ।५०।