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________________ १३४ सिरि मूवजय सर्वार्थ सिद्धि संघ, बैंगलौर-दिल्ली कान्ति कम न होनेवाला अतिशय प्रकाशमान रल रचित चार! यह समवशरण जनता का सर्वाथ सिद्धि साधक होने से सर्वाष स्वर्म धर्म चक्र को यक्षदेव मानन्द से धारणा किये रहते हैं ।११॥ । भी यही है ।१३॥ नाना प्रकार के प्रानुषणों से सुसज्जित सांगत्य नामक छन्द जिस जनता को सब अंक के दिखलानेवाला होने के कारण यह समवशरण प्रकार सुशोभित होता है उसी प्रकार धर्म चक्र बारहवां अतिशय है और ३२१ सर्वात सिद्धि भो है ।१३२॥ दिशाओं में अर्थात् एक एक दिशा में सात-सात पंक्ति रूप रहनेवाला स्वर्ण समवशरण में कोटि चन्द्र और कोटि सूर्य का प्रकाश भी रहता है। कमल तेरहवां अतिशय है। पौर भगवान के बाद पीठ में रक्खी हुई पूजन १३३३ की सामग्री पूर्णिमा के समान सफेद वसा वाला चौदहवां अतिशय है ।११६-१ स्वर्ण में रत्न मन्हित होकर तोरण में विराजमान रहता है ।१३४॥ १२०॥ उन तोरणों में पारा को सिद्ध करके बनाया हुआ मणि भो लटका हमा पाद पीठ में रहनेवाली पूजन की सामग्री और उपकरण इन दोनों को रहता है ।१३।। जिस प्रकार समस्त दुर्गुणों को विनाश करनेवाला रत्नत्रय है इसी घटा देने से चौतीस शुभ अतिशय हो जाता है । इन सब अतिशयों का वर्णन प्रकार रसमरिण भी जनता के दरिद्रता को नाश कर देती है।१३६। करनेवाला विनयावतारी अर्थात् विद्वान् कौन है ।१२१॥ स्वर्ण तो हल्दी के रंग के समान रहता है उस वर्ण को दूध के समान इस प्रकार का वर्णन करनेवाले कवि लोग इस पृथ्वी पर कहीं भी । मा। सफेद बनानेवाला यह पारा का मणि है ।१३७। नहीं है ।१२। विवेचन:- इसी भूवलय में पाने वाले श्री संमतभद्र प्राचार्य के वचनों इस प्रकार का व्यक्ति पृथ्वी पर कहो है बसानो ।१२३॥ को देखिये। यदि नये मार्ग का ज्ञाता हो तो उनसे भी पूरा बन नहीं हो सकता स्वर्णश्वेतसुघामृतार्थ लिखितिं नानार्थरत्ना कर्म । अर्थात् सफेद स्वर्स है। १२४॥ बनाने की विधि अनादि काल से जैनाचार्य को मालूम थी। अाज कल इसको जिनेन्द्र भगवान का बताया हुमा मार्ग धर्म को लक्षण देनेवाला पलाटिनम् कहते हैं और वह पल्टी पलाटिनम् बहुमूल्य है। है ।१२५॥ अन्तिम में प्रात्मसिद्धि को प्राप्त करनेवाला यह समवशरण भूमि यह भूवलय का जो अंक है वह अंक प्राणी के कष्ट को दूर करने । है ॥१३॥ वाला है ।१२६॥ लड़के लड़कियों को अर्थात् समस्त बन्धु बान्धवों को त्याग कराने वाला यह अंक भद्र स्वरूप है और मंगल रूप है ।१२७४ । यह काव्य है ।।१३६॥ जिनेन्द्र भगवान को शिव शब्द से भी कहने से यह समवशरण कैलाश राक्षस और किन्नर इत्यादि देव लोगों ने इस समवशरण को बनाने भी है। १२॥ की विद्या को सीखा है। उस विद्या को बतलाने वाला यह भूबलय काव्य जिनेन्द्र भगवान को विष्णु कहते हैं इसलिए समवशरण वैकुठ भी । है ।।१४०॥ है।१२। इस प्रकार भव्य जीवों के पुण्य से बनाया हुआ महल रूपी यह भूवलय इसी प्रकार जिनेन्द्र भगवान को ब्रह्मा भी कहते हैं इसलिए यह समवशरण । ग्रन्थ है ॥१४॥ सत्य सोक भी है ।१३०० भवनवासी, व्यन्तरवासी, भवनामर, व्यन्तरामर, ज्योतिषक और स्वर्ग
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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