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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संप बंगलोर-दिल्ली भूपादरी आदि पुष्पों का समूह पृथ्वी के ऊपर अक्ष रेखा के समान प्रतीत होता है समवशरण में सभी जीव मृत्यु की बाधा से रहित रहते हैं ।१०। है। इस समवशरण का वर्णन करने वाला यह भूबलय है ।८६-६३
सांसारिक जीवों को चलते, फिरते उठते बैठते आदि प्रकार के कारणों विवेचन-भूवलय के चतुर्थ खण्ड में श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य ने श्री समन्त से कष्ट मालुम पड़ता है परन्त रामवशरण के अन्दर आने से सभी कष्टों से भद्राचार्य के श्लोकों द्वारा केवड़ा पुष्प का विशेष महत्व दिखलाया है। उन । जीव रहित हो जाता है ।१०३। श्लोकों का वर्णन निम्न प्रकार से है
बहुत से व्यक्तियों में समवशरण को देखते ही वैराग्य उत्पन्न हो जाता "कुप्या तं भरिताय केतकिसुमुकषोन्मुखे कुजरम ।
है और वैराग्य पैदा होते ही वे लोग दीक्षा ले लेते हैं ।१०४ । चक्र हस्तपुटे समन्त विधिना सिधूर चन्द्रामये ।
। संसार में रहते हुए कई जोव अनादि काल के कर्म रूपी धन को अपना इत्यादि रूप से रहने पर विज्ञान सिद्धि के लिए यह ग्रन्य अत्यन्त उपयोगी समझ करके उसी में रत रहते हैं परन्तु वे जीव समवशरण के अन्दर पाते है। अत: इन श्लोकों का विशेष लक्ष्य से अध्ययन करना चाहिए। नित्य नये- ही उस कर्म रूपी धन से विरक्त हो गये ।१०५॥ नये सुगंधित गुलाब जल की जो वृष्टि श्री जिनेन्द्रदेव के ऊपर अभिषेक रूप से
समवशरण में रहनेवाले जीवों को पालस्य नहीं रहता है ।१०६) होती है वह सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से मेघकुमार देवों द्वारा होती है। ६४
समवशरण में रहनेवाले जोव राग द्वेष से रहित रहते हैं ।१०७१ यह जलवृष्टि पांचवां अतिशय है। इसे देव अपनी वैक्रियिक शक्ति समवशरण में रहनेवाले जीवों के मार्ग में किसी भी प्रकार की अड़चनें द्वारा बनाते हैं, फल भार से नम्रीभत शाली [जड़हन] की पतली तथा हरे रंग नहीं पड़ती हैं।१०८। की जड़ पृथ्वी पर उगना छठवां अतिशय है । विविध जीवों को सदा सौख्य देना
वहां रहनेवाले जीवों को सर्वदा सूख ही मालूम पड़ता है ।१०६। सातवां अतिशय है ।
वहां रहनेवाले जीवों को किसी भी कार्य में प्रस्तुरता इत्यादि नहीं देवगण अपनी वित्रिया शक्ति से चारों और ठण्डी वायु फैला देते हैं।। रहतीं 1११०॥ यह माठवां अतिशय है। तालाब तथा कुयें में शुद्ध जल पूर्ण होना नौवां वहां रहनेवाले जीवों को सताना दुःख इत्यादि किसी भी प्रकार की. अतिशय है । ६
बाधायें नहीं रहती हैं 1१११ आकाश प्रदेश में बिजली [ सिडलु ] काले बादल उल्कापात प्रादि समवशरण में रहनेवाले जीवों को धर्मानुराम के अतिरिक्त अन्य मालोचना न पड़ना १०वां अतिशय है। सभी जीव रोग रहित रहें, यह ११वां अतिशय नहीं रहती है ।११२॥ है 1९७
हम बहुत ऊपर यागये हैं नीचे किस प्रकार से उतरें इस प्रकार समवशरण के चलने के समय में सभी जीव हर्षित रहते हैं 184) की आलोचना भी जीवों को नहीं रहती ।११३३
समवशरण के बिहार के समय में सभी जीव अपनी आलस्य को त्याग वहां रहने वाले जीवों को दरिद्रता का भय नहीं रहता है ।११४॥ कर प्रश्न चित्त से रहते हैं ।६६)
हम स्नानादि से पवित्र है । और वह स्नानादि से रहित है इस प्रकार रोगादि बाधाओं से रहित होकर सभी जीव मुखपूर्वक रहते हैं ।१०।।की शंकायें मन के अन्दर नहीं पैदा होती हैं ।११५॥
समवशरण में पाते ही सभी जीव माया मोह इत्यादि सांसारिक बहुत वर्णन करने की आवश्यकता नहीं बहां पर सभी जीव सुख ममता से विरक्त हो जाते हैं और उनको समवशरण के प्रति आस्था हो जाती। पूर्वक रहते हैं ।११६।
६अक्षर अर्थात् ६ प्रकार के द्रव्यों का वर्णन इस भूवलय में है ।११७॥