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सिरि भूषजय
सार्थ सिद्धि संघ बैंगलौर-पिल्ली देव गण भगवान् के १३ प्रतिशयों को करते हैं । उसमें पहले के मति- इसी प्रकार गन्ध माभव ( गन्ध मादन ) पुष्प भी उस पुष्प वाटिका शय संख्यात योजन तक रहने वाले सभी जंगली वृक्षों में पसे, पुष्प, फल आदि में रहता है 1७६ एक ही समय में लग जाते हैं और उतनी दूर तक एक भी कांटा तथा करण मात्र! इसी भांति नव जात गंध माधय लता भी वहां रहती है 1000 रेत का संचार न हो, ऐसी हवा चलने लगती है।
वहां पर मुविशाल रूप से फैली हुई चित्रवल्ली नामक वेला भी कामधेन के द्वारा अपने घर के प्रांगन में अनेक सामान को प्राप्ति तथा । रहती है ।१॥ पवन कुमार द्वारा चलने वाली अत्यन्त सुखकारक और मानन्ददायक हवा का
विवेचन:-श्री कुमुदेन्दु आचार्य ने इस चित्रवल्ली नामक लता का चालना दूसरा अतिशय है।
वर्णन श्री भुवलयान्तर्गत चतुर्थ खण्ड में विस्तृत रूप से किया है और उसके . समवसरण में सिह, हाथी, गाय, पक्षी, सर्प इत्यादि ने अपने परस्पर र संस्कृत विभाग में पाया है किको छोड़कर जैसे एक ही जगह में रहते हैं वैसे अपने कुटुम्ब इत्यादिक जन वैर-1
नमः श्री वर्षमानाय विश्व विद्याऽवभासिने। रहित आपस में प्रेम से अपने-अपने स्थान में रहना तीसरा अतिशय है।
चित्रवल्ली कयाख्यानं पूज्यपादेन भासितम ।। जैसे विवाह मंडप के बीच वर वधू को बिगने के लिए नव रत्न से
विश्व विद्या के प्रकाशक श्री वर्धमान भगवान को नमस्कार करके श्री -निमित वैदिका तैयार की जाती है उसी तरह स्फटिक मरिण के प्रकाश के समान
पूज्य पाद स्वामी ने चित्रबल्ली का व्याख्यान किया है। श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य ने चमकने वाली यह भूमि चौथा अतिशय है । समवपारण में रहने वाला यह चौथा
सूचित किया है कि इसी प्रकार मंगल प्राभूत के समस्त विषयों को सभी जगह प्रतिशय कवि लोगों के द्वारा भी अवर्णनीय है 1७१-७६।
जानना चाहिये। उम भूमि के अतिशय को पांच पांच हाथ के नौ पार्ट के विभाग तक!
समवशरण के अन्तर्गत पुष्प वाटिका भित्ती के ऊपर चम्पा पुष्प का किया गया है।
भी वर्णन किया गया है।
नोट-इस चम्पक पुष्प के विषय में श्री समन्तभद्राचार्य ने बड़े सुन्दर ' अन्तर श्लोक का विवेचन--उपयुक्त भागों का विवेचन शिल्पशास्त्र
ढंग से वर्णन किया है ।। 'और ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्ध रखता है। शिल्प शास्त्र के विद्वानों का कथन
इसी प्रकार गन्धराज [ सुगन्ध राज ] का मेला भी वहां चित्रित है कि ऊपर के नियम से ही मठ, मन्दिर तथा महल मकान आदि बनाना चाहिये; क्योंकि यदि ऐसा न होकर कदाचित् अग्नि कोड़ में मकान एक इंच।
कमल पुष्प के जल कमल, थल कमल आदि अनेक भेद हैं। उन भी शास्त्रोक्त नियम से अधिक हो जाय तो गृह एवं गृह स्वामी दोनों के लिए
। सबका चित्र समवशरण में चित्रित है।४1 अनिष्ट होता है। इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्रानुसार भली भांति शोधकर भवन
वहां पर समस्त पुष्पों की कली चित्रित रहती है।८५॥ निर्माण किया जाय तब तो ठीक है किन्तु यदि ऐसा न करके सूर्य चन्द्रादि नव
कामकस्तूरी की टोकरी भी वहां बनी रहती है। ग्रहों के विपरीत स्थान में बनाया जाय तो वह भी महान कष्टदायक होता
उस वाटिका में कर्नेल के श्वेत और रक्त वर्ण के पुष्प बने रहते है !७७।
वन वाटिका में दवन, जुही, मालती (मोल्ले) आदि सुगंधित पुष्पों के वहां पर नव मालती और मुड़िवाल भी भित्तिका में चित्रित हैं 11 2. समूह रहते हैं ।७८)
पाशा खेल में प्रयुक्त बन्धूक, ताड़ वृक्ष के चित्र तथा केतकी पुष्म,
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