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सिरि अवक्षय
सर्वार्थ सिद्धि मप बैंगलोर-दिल्ली
भगवान की दिव्य वारणी इन सात तत्वों का वर्णन करती हैं ।४३।
अर्थात् अरहंत सिद्धादि नव पद का अतिशय वस्तु रूप यह भूवलय ग्रन्थ है ।५२। सात तत्त्वों में पुण्य और पाप को मिलाने से तत्त्व होते हैं । भगवान ३४३ = १ यह अतिशय से युक्त दिव्य चक्षु का प्रभा से बम धर्मराज की दिव्य वाणी उन । तत्त्वों का वर्णन करती है।४।
(मृत्यु) भाग जाता है ।५३। जीच, पुद्गल, धर्म, अधर्म, प्राकाश ये पांच पंचास्त काय का भी वर्णन यह वस्तु नामक ज्ञान चक्षु अरहंत सिद्धादि नवकार मन्त्र का प्रादि करती है।४५॥
मन्त्र है।५४१ इन सबको प्रमाण रूप से बतलाने के समय सुन्दर, २ मार्मिक तत्व का ज्ञानियों के अन्तर्गत ज्ञानरूपी विश्व का साम्राज्य यह भूवलय है।५५ वर्णन करती है ।४६॥
ज्ञानियों के ज्ञान में झलकने वाली नव नवोदित दिव्य ज्योति रूप यह जिनेन्द्र भगवान को दिव्य ध्वनि से ही यह दिव्य वाणी निकलती है। महा काव्य है।५६। अन्य के सहारे से नहीं ।४७१
कवियों की कल्पना में न मानेवाला दिब्य रूप यह काव्य है।५७। यह दिव्य वाणी भगवान जिनेन्द्र देव की वाली द्वारा निकलने के कारण ! इस ग्रन्थ का सर्वावयव अर्थात् सभी भाषायों का ग्रन्ध परम पवित्र अन्तिम प्रमाण रूप भूवलय शास्त्र है।४।
है।५८। उपयुक्त समस्त दम अविराम दुनिया को आश्चर्य चकित करने यह सभी भाषाओं का ग्रन्थ संसारापहरण का मुन्य मार्ग है ।५६॥ वाली हैं। परहंत भगवान को घाति कर्मके (ज्ञानावर्णीय, दर्शनावर्गीय, मोहनी, । समवशरणादि महावैभव को दिखनाने वाला यह भूवलय ग्रन्थ है ।६० अन्तराय) नाश होने से केवल ज्ञान की उत्पत्ति होती है और केवल ज्ञानके साथ यह भवलय ग्रन्थ दिगम्बर मुनियों के समान निराकरण है।६। । ही इन दस अतिशयों के उत्पन्न होने से इसका नाम पाति क्षय और जाति क्षय यह काव्य मिष्ट बचन रूपी जल बिन्दु से भरा हुपा शान का सागर भी है ४६
जो क्षेत्र में भी कर्म रह गये तो यह अतिशय आत्मा को नहीं मिलता।। यह काव्य नब पद भक्ति को शुद्ध करनेवाला है 1६३। ये आठ कर्म निर्मूल करने के मार्ग हैं और इसलिए इसका नाम धाति क्षय, और
यह भूवलय ग्रन्य नव पद भक्ति द्वारा प्राप्त होने वाले फल को देने जाति क्षय पड़ा ।५०
वाला हैं ।६४ जीव को जब अरहंत पद प्राप्त होता है तब अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन,
नव पद के ज्ञान से समस्त भूवलय का ज्ञान या जाता है ।६॥ अनन्त वीर्य, अनन्त सूख इत्यादि अनन्त गुण प्राप्त हो जाते हैं। उन अनन्त । नव अंक को सम्पूर्ण सिद्धि ही चारित्र की सिद्धि है।६६। गुणों से, प्रात्मा करोड़ों चन्द्र सूर्य प्रकाश जैसा तेजोनिधि हो जाता है। ऐसे यह भूवलय ग्रन्थ अवसर्पिणी काल के समस्त विषयों को दिखाता अरहंत भगवान की पूजा करते हये पारा की सिद्धि करने का प्रयत्न करना है। श्रेयस्कर है ।५१॥
यह काव्य अवसर्पिणी काल का सर्वोत्कृष्ट भव्यांक रूपी है।६८। नवकार मंत्र के आदिमें तीन अंक हैं, तोन को तीन मे गुरणा कर दिये इम काव्य के अध्ययन से गणित शास्त्र का मर्म मालूम होकर अङ्क तो विश्व का समस्त अङ्क मी आ जाता है । नौ का परिजान ही दिव्य चक्षु है, असे विभाजित हो जाता है 1६६। और नौ अङ्क का विवरण करने से ही विश्व का समस्त दृष्टि भेद अर्थात् तीन इस रीति से समस्त विद्याओं को प्रदान करके अन्त में भव विनाश सौ श्रेषठ धर्म का और उनमें रहने वाले भेद और अभेद का ज्ञान हो जाता है। करके सिद्धि पद को देने वाला यह भूवलय ग्रन्थ है ७०।