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________________ सिरि भूवलय ॥१९१॥ सुह शिव भद्र वग्भाळ ।। १६२ ॥ ।। १६४।। कुहक विनाशक राज्य महावीर नडियिट्ट राज्य वो* दिनोळन्सरमुहूर्ताद सिद्धान्त दादि अन्त्यवनेल चूक रितेय सान्गत्यवेने मुनि नायर । गुरुपरम्परेय विरचि छाॐ येयोळ् श्राचार्यनुसुरिद वायि । दायवनरियुत नानु || प्राय मिश्र गिलादतिशयदेऴ्नूर हदिनेन्दु । अगणितदक्षर भाषे ॥ शुॐ गणादि पद्धति सोगसिनि रचिसिहे मिगुव भाषेयु होरगिल्ल ॥१६८॥ चित्त ॥ साधिपराज प्रमोघवर्षन गुरु । साधितश्रम सिद्ध काव्य ॥ १६५ ॥ त सिरि वीरसेन सम्पादित सद्ग्रन्थ विरचितवाचक काव्य ॥१९६॥ मुन्गल पाहूडद क्रमान्कद । दायवि कुमुदेन्दु मुनि १७ सोगसाथ कर्मादादि जगदोळिन्निल्लद भाषे सोगदीव श्री चक्रबन्ध दिगिलळिदिह स्वर्ग बन्ध भिगवु मानवनध्प भंग युग परिवर्तनदन्ग सुगुरण सम्पूर्णानन्य भाषे गणित जीवर भाषे बगे बगेयतिशय बन्ध अगणित गणित अनन्त खगबु स्वंरंगके पोप भंग ति रेय जीबरनेल्ल पालिप जिन लो कद त्रस नालियोळगिह जीवर यश कर्मदुदयच तन्दीव जिन विषहर गारुड मरिय उ सह सेनरनु तोरुवुदु १३३ ॥१९६॥ || २०२ || ॥२०५॥ ॥ २०८ ॥ ॥२११॥ सर्वार्थ सिद्धि सँघ बेंगलौर - विल्ली महा सिद्ध काव्य भूवलय ॥ १६३॥ कसद कर्मद तोलगिपुडु ॥ २२४॥ वशदात्म सिद्धि भूवलय ।।२२७ ।। ॥ २००॥ || २०३ || || २०६ ॥ ॥ २०६॥ ॥ २१२ ॥ ।।२१४ ।। ॥ २१७॥ धर्म । नर पालिसुबुद्ए न * दे ॥ गुरु धर्मदाचारवनु भीरदिह राज । धरेय पाळिवुदेनरिवे ॥ २१५ ॥ साकुव जैन धर्म विइदु ॥ शो करवेने सर्व लक्षण परिपूर्ण । नाक मोक्षव नीयुवुदु ॥ २१६ ॥ धर्म। रसेगे सौभाग्यवनित् ता यशकाय जोवर शोकव हरिसुत । रससिद्धियन्तागिपुदु ॥२१८॥ विशेयन्तवदनु काणि ॥ २२० ॥ ॥२२२॥ कुसुमायुध तापहरनु सुषम कालवनु तोरुवदु प्रसद्रुश ज्ञान साम्राज्य ॥२१६॥ असमान सान्गत्य बहुदु ॥२२२॥ विसमान्कनु भागिपुदु ॥२२५॥ व घा# बगेयतिशय शुद्ध काव्य ॥ २०२॥ बिगिविह सदरियन्क ॥ २०४॥ मुरुम पक्षि भाषेय भन्ग ॥ २०७॥ जगवेल्ल बिगिदिह् भन्ग || २१० | जगवेल्ल सिद्ध भूवलय ॥२९३॥ ॥२२३॥ ॥ २२६ ॥ ॥ २२८ ॥ भू*# तबल्याचार्य नवन भूवलयद् । श्रख्यातिय वैभव भव र नूतन प्राक्तन वेरडर सन्धिय ख्यातिय सारुव सूत्र व र भूतबलि नामवबनतिशेयवेन् । दोरेवान अतिशयवेनु ॥ ह ल वरण वारिधियदु बळसुत बन्दिरे । सविय श्वर्धमान पुर । सा ॥२२६॥ ॥ २३० ॥ श्रवरोळु मागधवन्ते ॥२३१॥ सवि विसिनोरिन बुग्गे ॥२३२॥ * शदु भारत त्रिकळिन्गवेनिसिद । रसेयेल्ल कन्नाडद म नद 'श्रू' काव्यदोळेन्दु नाल्कोळिन् । टेनुवाग बन्दन्कव रुष वर्धनवाद भारत देशद । गुरु परम्परेथाद राज्य विर पुरद नाडाद सौराष्ट्रब। ई विश्व कर्माट देश अवितिहुददरोळु रसवु ॥ २३३ ॥ प्रचरुपयोग मुन्वे ॥ २३४ ॥ वशगेम्दन्तर हबिनदु साविर । विशेगे नूररवत्तंन्टून ॥ २३५॥ जिनरूपिनाशेय कोनेगे श्रोम्बत्तन्क । एनुवष्टु ( जिनर भूवलय) महाप्रातिहार्य ॥ २३६॥ अथवा अगं, ५२, ४४२+२३,५८०१,७६, ०२२ । ऊ ८, ७४८+ अन्तर १४, ८३२=२३,५५० ।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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