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________________ से भी किन्हीं ने उल्लेख किया है। प्राचार्य कुमुदेन्दु ने जैन मत-सूत्रों के अभि- भद्राचार्य के शिष्य माघनंद्याचार्य को अपने ज्ञानावररणी कमक्षयार्थ प्रदान मान से इतर मतों के अभिप्रायों को ठुकराया नहीं । इतर मतों का बहुत किया था, ऐमा अन्य को अन्तिम लिपि प्रशस्ति से जाना जाता है। दिनों तक पूर्वजों की निषि समझकर उस साहित्य को एक प्रकार से तुलनात्मक __ अनूनधरमज नाम का प्रसिद्धरीति से सिद्ध करके बतलाया है। तुलना करते हुए कहीं भी विषमता को स्थान महनीय गुरणनिधाम् । सहजोत बुद्धिविनय निधिये नेनेगळ्दम् । नहीं दिया है। किन्तु अगाध प्रमाणों को सामने रखते हुए उस उपकार को महिविनुत कौति कांतेय । महिमानम् मानिताभिमानम् सेनम् । उपयोग में लाकर केवल वस्तु तत्व का विवेचन मात्र किया गया है और इसके सिवाय उन्होंने अन्य किसी तरह का कोई प्राक्षेप प्रत्याक्षेप रूप में कोई कथन इस सेन की स्त्रीमहीं ही किया है और आगे या पीछे होने वाले विपर्यास को ध्यान में रसते हए अनुपम गुरणगरण बाखवर् । मनशील निदानेयेनिसिजिन पदसत्के। मोती के समान निर्मल बुद्धिरूपी धागे में उसे पिरोया गया है । कनाशली मुखळेनेमा । ननधि श्री मल्लिकम्बे ललनारत्नम् ॥ जहां तक मैं जानता हूँ यह काव्य अत्यन्त प्राचीन है और भारतीय अवनितात्नदपेम् । पावनगम योगळ लरि दुजिन पूजयना । साहित्य में ऐसा अनुपम काव्य (ग्रन्थ) अभी तक कोई उपलब्ध नहीं हुआ है। नाविधव दानद मळिन । भावदोळाम मल्लिकब्बयम् पोल्लवरार् । अतः इसे सबसे महान् काव्य कहने में कोई आपत्ति नहीं है। विनयदे शीलदोळ गुणदोळादिय पिनिम् पुट्टिद मनो। मूल ग्रन्थ जन रति रूपिनोळ् खरिणयेनिसिई । मनोहर बप्पु दोदंरु॥ पिन मनेबान सागर मेनिप्पयधूत्त मेयप्पसबसे । कुमुदेन्दु आचार्य द्वारा स्वयं हस्त द्वारा लिखी हुई इस ग्रन्थ की मूल प्रति उपलब्ध नहीं है और यह उपलब्ध प्रति किसके द्वारा लिखी गई है यह भी ननसति मल्लिकन्चे धरत्रियोळा:रेसद्गुरणंगळोळ् ।। जात नहीं है। अन्य समकालीन, पूर्व या पश्चाद्वर्ती किसी कवि ने उनका श्री पंचमियम नोंतु । धापनेयम माडिबरेसि सिद्धांतभना ॥ उल्लेख भी नहीं किया है जिससे उनके सम्बन्ध में विशेष रूप से यहाँ विवेचन रूपवती सेन वथुचित । कोप श्री माघनं दियति पतिमित्तल् ॥ प्रस्तुत किया जाता। केवल उनकी कृति भवलय ग्रन्थ में ही उनका नामोल्लेख इस मल्लिकव्वे के द्वारा प्रतिलिपि की हुई प्रति 'दान चिन्तामणि' मेरे होने से उनका नाम नबीन रूप से परिचय में प्राया है। अत: विद्वान लोग उस पास है । इस महिला ने ग्रन्थ को स्वयं पढ़कर और दूसरों को पढ़ाकर स्वयं मनन काल की ग्रन्थ राशि और शासन-सामग्रो का यदि परिशीलन करें तो तत्कालीन और प्रचार किया, ऐसा मालूम होता है। इस ग्रन्थ को पढ़कर उससे प्रभावित इतिहास और ग्रन्थकर्ता एवं अन्य की महत्ता के सम्बन्ध में विशेष जानकारी होकर प्रिया पदन के देवया ने अपने लिखे हए कुमुदेन्दु शतक में निम्न रूपमें प्राप्त कर सकते हैं। किन्तु जिन्होंने इस ग्रन्थ का अध्ययन किया है, कराश है। उल्लेख किया हैउन्होंने ही इसकी महत्ता को समझा और अनुभव किया है। माता कब्बे, प्रिया विदितविमलनानासत्कलान् सिद्ध मूतिहि । पट्टन के जैन ब्राह्मण कवि, और कन्नड कवि रल के पोषक, दान चिन्तामरिण के पोषक पत्तिमच्चे के समान, मल्लिकब्वे नामकी महिला ने इस भूवलय स्वरूप, 'घल कुमुदो राजयद् राजतेजम् ।। घवल जयधवल, महा धवल, विजय धवल और अतिशय धवल इत्यादि ग्रन्थों के इमाम्यलवलेककुमुदींदुप्रशस्ताम् । साथ इस महान ग्रन्य की प्रतिलिपि कराकर इस महान् सिद्धान्त ग्रन्थ को गुण । कयास विश्रुवंतिते मानवाश्च ॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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