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________________ सिरि भूवलय ११५. वृक्षोंके १८००० जाति के पुष्पों की वर्षा होती है और इससे सकल रोग निवारण रूप दिव्यौषधि बनती है, इससे खेचरत्व सिद्धि, जल गमन, दुलेहि सुवर्ण सिद्धि इत्यादि क्रियाओं को बतलाने वाले भूवलय के चतुखंड रूपी प्राणवाय नामक . विभाग में वर्णित है । इसे पुष्पायुर्वेद भी कहते हैं ७१८ भाषात्मक दिव्यध्वनि, अक्षर रूपी चार होने पर भी चतुर्मुख दीख पड़ने वाला सिंहासन, ज्ञानज्योति को फैलानेवाला भामंडल, प्रचार करनेवाली दुन्दुभि, भगवान के ऊपर रहकर तीनों लोकों के स्वामित्व को दिखाने वाला छत्रत्रय "ये आठ प्रकार की भगवान की संपदायें समस्त जीवों को हित करने वाली हैं। प्रश्न - यह कैसे ? उत्तर - कुमुदेन्दु ग्राचार्य कहते हैं कि प्राकृत में अष्टमहाप्राप्ति हार्यो को पारि कहते हैं उनमें सर्व प्रथम अशोक वृक्ष प्रातिहार्य है जोकि जनता के शोक का अपहरण करनेवाला है। उस वृक्ष का विवरण यों है - ऋषभादि तीर्थंकरों को जिन जिन वृक्षों के मूल भाग में केवल ज्ञान प्राप्त हुआ उसको अशोक वृक्ष समझना चाहिए ॥१३॥ न्यबोध १, सप्तपर्णं २, शाल ३ सरल ४ प्रियङ्ग ( स्वेता ) ५, प्रियङ्ग (रक्त) ६।१४ शिरीस ७, श्रीनाग ८ अक्ष ६, धूलि १० पलाश ११ । ११४१ | पाटल १२, जामून १३, दपि १४, नन्दी १५, तिलक श्वेताम्र १७, कलि १८, चम्पा १६, वकुल २० १६ | ॥१४२॥ मेप ग २१ ।।१४३ ।। धूलि (लाल ) २२, शाल २३, धव २४, ये चौबीस क्रमशः अशोक वृक्ष हैं। इन वृक्षों के फूलों की भावना देकर अग्नि पुट करने पर पारा सिद्ध रसायन रूप मारिए वन जाती है || १४४ ॥ ये सब वृक्ष रसमणि के लिए उपयोगी होने के कारण माङ्गलिक होने से इन्हीं वृक्षों के पत्तों की बन्दन वार बनाई जाती है ।११४५|| उस वन्दन वार के बीच बीच में उस रस मरिण का बना हुआ घण्टा लगा रहता हूँ ।। १४६ । यह वन्दनमाला देखने में प्रत्यन्त सुन्दर मन मोहक हुमा करती है । १४७ | सर्वार्थ सिद्धि संघ, बंगलोर-दिल्ली इस बन्दन माला की छटा एक अनुपम रमणीय हुया करती है जिसके प्रत्येक पक्ष में से राग की परम्परा प्रगट होती रहती है । १४८- १४९ यह अशोक वृक्ष अधिक मात्रा में फल और पुष्पों से व्याप्त हुआ करता है । १५० ६ अगर रससिद्ध करना हो तो इन वृक्षों के क्षुद्र पुष्प न लेकर विशाल प्रफुल्लित पुष्प लेना चाहिए । १५१ । और उसी को फिर यदि रस मरिण बनाना हो तो इन्हीं वृक्षों के क्षुद्र (मञ्जरी रूप ) फूल लेना चाहिए ॥१५२॥ सबसे पहलान्यग्रोध नाम का अशोक वृक्ष है। उसके फूल को यशस्वतीदेवी अपनी चोटी में धारण करती रहती थीं । १५३३ इसी प्रकार प्रथम कामदेव बाहुबलि भी कुसुमबाण प्रयोग के समय इसी फूल को काम में लेते थे । १५४ | इसीलिए सभी महात्माओं ने इस फूल को कामितफल देने वाला मानकर अपनाया है ।।१५५|| इस फूल के उपयोग से भव्यों को जो सम्पदा प्राप्त होती है वह वृक्ष की बेल के समान उत्तरोत्तर बढ़ती रहती है । १५६। जिस किसी पुरुष ने विष पान किया हो तो उसकी बाधा को दूर करने के लिए इस फूल को प्रौषधि रूप में देना । १५७१ श्री भरत चक्रवर्ती की पत्नी कुसुमाजी देवी अपने सब अलंकार इसी पुष्प द्वारा बनाती थीं । १५८ पारा को धनरूप बनाना हो तो इस पुष्प को काम में लेना । १५६ | जिस प्रकार भगवान का अशोक वृक्ष अनेक शाखा प्रति शाखाओं को लिए हुए होता है उसी प्रकार यह भूवलय ग्रन्थ भी अनेक भाषा तथा उपभाषाओं को लिए हुए है । १६० । भगवान के जो अशोक वृक्ष बतलाये गये हैं वे सब अपने प्रत्येक भाग उत्पादक माने गये हुए हैं। इस प्रकार श्रवरण सिद्धि के लिए भी परम सहायक में नवरङ्ग मय होते हैं जोकि नवरस के के महत्व को रखने वाला प्रशोक वृक्ष
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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