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सिरि भूवलय
उत्तमार्थ को सपने
।। १०७ ।।
अन्तरात्मा को परमात्मा बनाने जाने वाला है ।। १०४ ।। है ॥१०५॥ ज्ञान की राशि को बढ़ाने वाला है ।। १०६ ।। श्री सिद्ध पद का कारण भूत है पुष्पपुञ्जको बटोर कर इकट्ठा करने वाला है ।। १०६ ।। ईशत्व प्राप्त करा देने वाला है ।। १०६ ।। ईष श्राभार नाम की आठवीं भूमि जो सिद्ध शिला है वहां पर पहुंचा देने वाला है। क्योंकि आठवें चन्द्रप्रभ भगवान के चरण कमलों को स्मरण करके प्रारम्भ किया हुया यह भूवलय है ।। ११० ।
यह महा शास्त्र गणित की महाराशि को सूक्ष्म से सूक्ष्मतर तथा सूक्ष्मतम बना देने वाला है ।। १११३
इस शास्त्र के द्वारा महाराशि को श्रल्पाति स्वल्प रूप में लाने पर भी उसमें कोई वाधा नहीं प्राती ।। ११२ ।।
यह नाश को जीतने वाला है इसलिए प्रविनश्वर रूप है ।१११३ ।। यही औषध रूप में परिणमन करने वाला है ।। ११४॥
यह शास्त्र औषघ के समान प्रारम्भ काल में कुछ कटु प्रतीत होने पर भी अन्त में अमृतमय है ।। ११५ ।।
सिद्ध की आत्मा में जिस प्रकार अवगाहन शक्ति है जिस से कि एक सिद्धात्मा
में अनन्त सिद्धात्मायें विराजमान हो रहती हैं उसी प्रकार इस में भी अनेक भाषाओं में होकर आने वाले अनेक विषयों को की अवगाहन शक्ति है ।१११६ ॥
सिद्ध भगवान के समान यह शास्त्र भी अग्ररुलघु गुण वाला है ।। ११७।। अतः यह शास्त्र सब जीवों को अच्छी से अच्छी दशा पर पहुँचा देने वाला है ||११८ ||
उस महान् अपूर्व शक्ति का अनुभव करा देने वाला यह काव्य है ।। ११६।। यह श्री शक्ति को बढ़ाने वाला है अर्थात् अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग लक्ष्मी को प्राप्त करा देने वाला यह आद्यकवलय है ॥१२०॥
इत्यादि विशेषण वाक्यों से विभूषित यह महा काव्य है ॥ १२१ ॥ .
भूवलय शास्त्र समाविष्ट करने
सर्वार्थ सिद्धि संघ बेंगलोर-दिल्ली
भगवान की बाणों को सुनने वाले भव्य जीवों ने तात्कालिक परिस्थिति को लेकर जो साठ हजार प्रश्न किये थे। जिनमें कि प्रायः सभी विषयों की बात थी, उन प्रश्नों का उत्तर जो अत्यन्त मृदुल और मधुर भाषा में श्री गौतम गणधर ने दिया था । वह चौंसठ अंकाक्षरों के बानवें वर्ग स्थानान्तर्गत जिन वाणी में था । उसी को श्री गौतम गणधर के बाद में कुमुदेन्दु प्राचार्य तक होने वाले प्रत्येक बुद्ध महत्रियों ने छः हजार सूत्रों में उपसंहृत करके रखा था जोकि गहन था उसी विषय को सरल करते हुये श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य ने कन्नड भाषात्मक छह लाख सांगत्य छन्दों में वर्णित किया है। जो कि मृदुता ललयात्मक होने से श्रोताओं के लिये हृदयग्राही वन गया है, वही भूवलय है। जो पूर्व महर्षियों के द्वारा छः हसूत्रों में बद्ध हुआ था वह नौ श्रागम द्रव्य शास्त्र था। उसका अध्ययन करते हुए तत्पर्याय रूप से परिणत होकर कुमुदेन्दु आचार्य ने उसी के भाव छः लाख सांगत्य छन्दों में वृद्ध किया । इसलिए इस भूवलय ग्रन्थ का नाम श्री आगम है जिसका कि यह सातवां "उ" नाम "का अध्याय है ।। १२५ ।।
आगामी काल में यह भूवलय ग्रन्थ सदा बना रहेगा ।। १२६॥
इस भूवलय की रीति से बाहर का बना हुआ जो शास्त्र है वह आगम नहीं होगा ।। १२७ ।।
यह द्रव्यागम शास्त्र भाव, काल, अन्तर (अनन्त), तद्वितिरिक्त क्षेत्र स्पर्शन, और अल्पबहुत्व इन अनुयोग द्वारा में बटा हुआ है। १२७-१३४ तक बन्द पाहुड के आगम अबन्ध पाहुड का विषय लिखा हुआ है ।। १३५॥ अन्य पाहुड को श्री प्रागम संख्याङ्क कहते हैं ॥१३६॥
भगवान के श्री मुख से निष्पन्न हुआ यह भूवलय नामक श्री प्रागम है || १३७॥
इसीलिए इस भुवलय को आगम ग्रन्थ कहते हैं ॥१३८॥ अष्टमहाप्रातिहार्य अर्थात :
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अशोकवृक्षः सरपुष्पवृष्टिदिव्यध्वनिश्चामरमासनञ्च । भाभंडलं दुन्दुभिरातपत्रं सत्प्रातिहार्याणि जिमेश्वराणि ॥ प्रशोकवृक्ष देवताओं के द्वारा भगवान के ऊपर पुष्प की वर्षा होना, दिव्य