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सिार भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बेगलोर-दिल्ली इन सब में जो सच्चा लाभ है वह एक प्ररहंत भगवान को हो प्राप्त प्राप्त कर लिया। यहो परजीव पर दया करने का फल है। हुआ है, ऐसा समझना चाहिए। अर्थात् वही सच्चा लाभ है ॥१६॥
यह ऊपर लिखे अनुसार गुरु हंसनाथ का सन्मार्ग है ।१८१॥ दया धर्म को बेचकर उसके द्वारा प्राया हुआ जो लाभ है वही यथार्थ
सभी तीर्थंकर परम देवों ने इसी मार्ग को अपनाया है ।१२। लाभ है ॥१८०॥
यह सदाकाल रहने वाला मात्मा का सौभाग्य रूप है ।१८३॥ दया धर्म का महत्व
यही धर्म विश्वकल्याणकारी होने से प्राणी मात्र के द्वारा प्राराधना एक दयालु धर्मात्मा श्रावक अपने काम के लिए परदेश जा रहा था।
। करने के योग्य है। १८४१ बीच में भयानक जंगल पड़ा गर्मी के दिन थे और उस जंगल की
यह अविच्छिन्न गुरु परम्परा से प्राप्त हुना प्रादि लाभ है ।१८५॥ जितनी घास थी वह सभी मुग्न गई थी। भयानक जंगल होने से उस।
यही घरसेन गुरु का अंग है। अर्थात् काल दोष से जब अंग ज्ञान में बहुत भाद और भाड़ियां उपजी हुई थीं। इसलिए उस जंगल में बहुत।
हिमा होने लगा तब श्रत की रक्षार्थ अपने अन्तिम समय में बुद्धि विचक्षण बड़े-बड़े हाथी और अन्य अनेक जानवर इत्यादि रहते थे। एक श्री भूतवलि और पुष्प दन्त नामक महषियों की साक्षी देकर बत देवता की जंगल में चारों ओर भाग लग गई, प्राग लगते ही उस जंगल में रहने वाले प्रतिष्ठापना जन्हाने की थी उन्हीं गुरु देव का अनुयायी यह भूवलय है ।१८६। जीब अग्नि के भय से भयभीत होकर चिल्लाने लगे । उस चिल्लाने की आवाज । जिन लोगों ने अपने जन्म में सत्य अत का अध्ययन करके प्रसन्नता उस दयालु धावक ने सुनवार देखा तो चारों और प्राग लगो हुई थी। और सभी पूर्वक जन्म बिताया उन महापुरुषों कामूल भूत गणित भंग यह भूवलय प्राणी भयभीत होकर चिल्ला रहे हैं। तुरन्न ही वह दयाल धाबक पहुंचकर है।१८७) उन सभी प्राणियों को बचाने का उपाय सोचने लगा। अर्थात् अग्नि को युद्धार्थी शूरवीर को जिस प्रकार कवच सहायक होता है उसी प्रकार बुझाने की युक्ति मोचने लगा परन्तु गर्मी के दिन होने के कारण वह अग्नि । परलोक गमन करनेवाले महाशय के लिए परम सहायक सिद्ध कवच बढ़ती जाती थी बुझने की कोई उम्मेद नहीं थी। वह विचारता है कि अगर है।१८। इस समय पानी बरस जाय तो अग्नि ठण्डी हो जायगो अन्यथा नहीं परन्तु हरि अर्थान् सबको प्रसन्न करने वाला और हर अर्थात् दुष्कर्मों का नाश आकाश साफ अर्थात् एकदम निर्मन दीख रहा है, पानी बरसने की कोई उम्मीद करनेवाला इनके द्वारा सिद्ध किया हुमा सिद्धान्त ग्रन्थ भी यही भूवलय नहीं है। अब क्या उपाय करना चाहिए ऐमा मनमें मोचते हुए उमने विचार किया । है|१८६४ कि इस अग्नि को शान्त करने के लिए एकान में बैठकर प्रज्ञप्ति मंत्र का जाप । अरहन्त पदों की पाशा को पूर्ण करने वाला यह भूवलय प्रन्थ है ।१६०। जपना चाहिए ऐसा मन में निश्चय करके एक झाड़ के नीचे बैठकर एकाग्रता से रत्नत्रय के प्रकाश को बढ़ाने वाला तथा सत्यार्थ का अनुभव करा देने मन्त्र का जाप करने लगा। एसे जाप करते-करते बहुत से जाप किये तब वाला एवं सात नत्वों का समन्वय करने वाला तत्वार्थ सूप ग्रन्थ है । उस तत्वार्थ तुरंत ही बादल होकर सब पानी वरमा जिमसे अग्नि ठएडी हो गयी और सभी सूत्र अन्ध को इतर अनेक विषयों के साथ में संगठित करते हए इस मवलय जीव अपनी २ जान बचाकर शांत चित्त में विचरने लगे। परन्तु दयालु प्रावक ग्रन्थ में भगवान के मुख तथा सर्वाङ्ग से निकली हुई वाणी का सम्पूर्ण सार अभी तक जाप में ही था जाप करते-करते उसी जाप में निमग्न होकर अपने । भर दिया गया है । इसलिए यह ग्रन्थ दिव्य-ध्वनि स्वरूप है ।१९१-१९२॥ शरीर को मूल गया । उसे तुरन्त मच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ और उसने । यह छठवां ई ई नामक अध्याय है। इस अध्याय में सम्पूर्ण सिद्धान्त दिगम्बर दीक्षा ग्रहण करली। तत्काल कठिन तप के द्वारा उसने केवल ज्ञान को भरा हुआ है । इसलिए इसमें जो पद का अक्षर, अक्षर का अङ्ग, अङ्ग को