________________
१०४
सिरि भूचालय
सवार्य सिद्धि संघ, बंगलोर-दिल्ली उसो सिद्ध अवस्था प्राप्त किये हुए स्थान को मोक्ष या बैकुण्ठ कहते हैं 1१६५९ उसको चतुर्थ पुरुषार्थ हस्तगत हो जाता है ।।१७।। यह श्री वीर वाणी विद्या है ।१६६॥
बह नवमांक सिद्धि किस प्रकार होती है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है इसी विद्या के सिद्धि के लिए हम अनादि काल से इच्छा करते । कि-रम भवलय ग्रन्थ में दव्य प्रसा
कि-इस भवलय ग्रन्थ में द्रव्य प्रमाणानुगम अनुयोग द्वारान्तर्गत जो करण सूत्र थे ॥१६७।।
है उसका पुनः पुनः अभ्यास करके उपस्थित कर लेने से नवमांक की सिद्धि हो केवली समुद्घात के अन्तर्गत लोक-पूरण समुद्रात में भगवान के प्रात्म!
जाती है । और वह पुरुष विश्व भर में होने वाली मातसौ पठारह भाषामों प्रदेश सर्वलोक को व्याप्त करते हैं उससमय केवलो का प्रात्मा समस्त जीव का एक साथ जाना हो जाता है। तया तीन सौ पर मतान्तरों का भी रावि के पात्म प्रदेश में भी स्थित होने के कारण उस प्रदेश को सत्यलोक ऐसे ।
जानकार बन जाता है ।।१७६॥ कहते हैं ॥१६॥
इस संसार में यह जीव अनादि काल से अशुद्ध अवस्था को अपनाये उस केवली भगवान के परिशुद्ध पात्म-प्रदेश हमारे प्रात्म-प्रदेश में सम्मिलित होने के बाद समस्त जीव लोक और भव्य जीव लोक इन दोनों।
हुए है, अतः तीन काल में एक रूप से बहने वाले अपने सहज भाव को न
पहिचान कर भयभीत हो रहा है । इसलिए दोनों लोकों में सुख देने वाली लोक को शुद्धि होती है ॥१६॥
अविनश्वर सर्वार्थ सिद्धि सम्पदा को प्राप्त करा देने वाले परिशुद्ध स्वभाव उन भगवान के विराट रूप का अन्तिम समय जन्म और मरण
को प्राप्त नहीं किया है। इस भूवलय के द्वारा नवमांक-सिद्ध प्राप्त हो को नाश करने वाला है ॥१७०॥
जाता है ॥१७॥ और वही समस्त भाव और प्रभाव रहित है ।।१७१॥
विवेचन-परमारण से लेकर तोनों वातवलय तक रहने वाले छः द्रव्यों इसलिए हे भव्य मानव प्राणियो ! तुम लोग इसी स्थान को हमेशा माशा
से परिपूर्ण भरा हुया क्षेत्र का नाम ही पृथ्वी है । एक परमाणु को जानने के करते रहो ॥१७२।। इस प्रकार प्राशा को रखते हुए श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य ने इस विश्वरूप ।
लिए अनायनन्त काल का परिचय कर लेने की भी जरूरत है। एक परमाणु के
परिचय कर लेने में अनाद्यनन्त काल बीत जाता है तो असंख्यात अथवा भूवलय काव्य का महत्व बताया है ।।१७३॥
अनन्तानन्त परमाणु के परिचय कर लेने में कितना समय लगेगा ? इस प्रश्न श्री विष्णु का कहा हुमा दत धर्म, ईश्वर का कहा हा अदत धर्म ।
{ के बारे में श्री कुमुदेन्दु याचार्य से असंख्याता संख्यात उत्सपिरणी और अवसर्पिणी तथा जिनेन्द्र भगवान का कहा हुआ अनेकांत इन तीनों धर्मोंका ज्ञान हो जाय तो।
काल के अर्द्धच्छेद शलाका से भी इस परमाए के कथन को घटा नहीं सकते ऐसा ३६३ अनादि काल के धर्म का ज्ञान होता है। उन धर्मों के समस्त मर्म के शानी ।
कहा है। इस प्रकार का महान जान इस भवलय में भरा हुआ है। उस सभी लोग अपने हृदय कमल की पाखंडियों में लिखे हुए अक्षरों में प्रों अंक को गुणा ।
ज्ञान को एक क्षण में कह देने वाला केवल ज्ञान कितना बड़ा होगा? इस कार रूप से गुणनकर के पाये हुए अंक में अनाद्यनंत काल के समयों को।
विचार को आप लोग ही करें। शलाका खंड के साथ मिला देने से आया हुआ जो काव्य सिद्ध है वही भूवलय , है ॥१७॥
एक व्यापारी थोड़ा सा रुपया खर्च करके बहुत सा लाभ प्राप्त करलेता है भूवलय के नौ अंकों के रहस्य को जो कोई भी मनुष्य जान लेता है, उसके समान तीन काल और तीन लोक के ज्ञान को प्राप्त कर लेने के लिए जा इन को वश में कर लेता है उसके निद्रा भूख प्यास इत्यादि अठारह दोष जोकि । थोड़ी सी तपस्या की जाती है उससे महान लाभ होता है, रंचमात्र भी नुकसान संसार के मूल हैं, सभी नष्ट हो जाते हैं इनका नाम-निशान भी नहीं रहता है। नहीं है ॥१७॥