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सरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलोर-दिल्ली को समन्वय भाव से देखता है । तब वह समन्वय अमृतमय बन जाता है।६।। दण्डे में नहीं, बल्कि वह तो मेरे मन के भीतर है। ऐसी भावना जब हृदय में जाग्रत होती है तब "मैं बड़ा हूं शेष सब
राजा को उत्तरोत्तर क्रोध पाता रहा प्रतः उसने तलवार से साधु के प्राणी मुझ से छोटे हैं। ऐसा छोटा भाव हृदय में नहीं रहता उस समय बह दोनों हाथ काट दिये और बोला कि-अब बता तेरी क्षमा कहां है ? त्रिलोकपूज्य माना जाता है । ६१॥
साधु ने शान्ति से फिर वही उत्तर दिया कि वह मेरे भीतर है। तब उसके जितने भी गुण हैं वे सभी भूवलय (जगत) के लिए प्रति
राजा ने तब साघु के दोनों पैर भी काट दिये और बोला कि बता, फलीभूत होकर पुनः प्रज्वलित अवस्था प्राप्त करा देते हैं ।६
१ क्षमा कहां है? तब वह जीव ५८ श्लोक में कहे अनुसार दयामय होने के कारण अपनी 1 इतने पर भी साधु को शान्ति भङ्ग नहीं हुई। बह बोला कि राजन ! सहनशीलता के सभी गुणों को सुरस विद्यागम रूपी भूवलय में देखता हुआ, मैने कह तो दिया कि वह मेरे हृदय के भीतर है, तुम्हारे इन शस्त्रों में वह नहीं संतोष से अपना प्रात्म-कल्याण कर लेता है।६३! .
। हो सकती है इस भूबलय ग्रन्थ का अध्ययन करने से मनुष्य में सहनशीलता पाती। _ तब राजा को होश ग्राया और वह सोचने लगा कि मैं बड़ा पापी हूँ है जैसे कि
। मैंने बिना बात इस साधु को कष्ट दिया परन्तु महान कष्ट होने पर भी साधु किसी एक राजकीय बगीचे में आकर एक तरुण सुन्दर सुडौल ऋषि जी ने अपनी क्षमा नहीं छोड़ी। ये साधु महात्मा बड़े धीर गम्भीर हैं। ऐसा विराजमान हुआ। उसी बाग में राजा सोया हुया था और उसकी रानियां । विचार करते हुए बह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाने इधर उधर टहल रही थीं। उन्होंने जब उस साधु को देखा तो सब इकट्ठो होकर । लगा। धर्मोपदेश सुनने की इच्छा से उसके पास प्राकर बैठ गई । मुनि ने उस समय । साधु बोले कि राजन् इसमें तुम्हारा क्या दोष है ? तुमने अपना कार्य उनको अहिंसा धर्म के अन्तर्गत क्षमा धर्म का उपदेश देना प्रारम्भ किया। किया और मैंने अपना कार्य किया तब राजा ने प्रसन्न होकर कहा कि प्रभो !
____ इतने में उस राजा की आंख खुली तो उसने देखा कि-रानियां उस ! इसमें कोई भी सन्देह नहीं कि पाप क्षमा के भण्डार हैं। साधु के पास बैठी हैं। श्रम से उसके मन में यह विचार पाया कि यह नवयुवक ३ तात्पर्य यह है कि क्षमा के प्रागे सबको सिर मुकाना पड़ता है परन्तु साधु इन रानियों को भ्रष्ट करना चाहता है इसीलिए यह उनसे वार्तालाप । यह क्षमा धर्म अध्यात्म-विद्या के अध्ययन किये बिना नहीं आ सकता। वह कर रहा है । इस विचार से क्रोध में आकर राजा उस साधु के पास गया और अध्यात्म विद्या इस मूवलय का सज्जीवन है, अतः यह भूवलय विश्वभर को बोला कि तुम इन रानियों के साथ क्या व्यर्थ बातें कर रहे हो ?
क्षमा धर्म का पाठ पढ़ाने वाला है। ___ साधु सरल परिणामी थे। अतः उन्होंने राजा से मीठे शब्द में कहा कि 'मैं ' अर्थात् अट्ठावन और 'ह' यानी ६० इनको परस्पर जोड़ दिया जाय तो क्षमा धर्म का व्याख्यान कर रहा है। परन्तु राजा के मन में तो कुछ ३ ११८ होते हैं इसका वर्ग करने पर १३९२४ होते हैं। उनमें से पुनरुक्क एक को
और ही बात समाई हुई थी इसलिए उसने उस साधु के एक तमाचा जमा । कम करने पर १३९२३ रह जाते हैं जोकि नौ से विभक्त हो जाते हैं तो १५४७ दिया और बोला कि में देखना चाहता हूँ कि तुम्हारा क्षमा धर्म कहां है ? लब्ध हुए इनमें उस पुनरुक्त एक को मिला दिया जाय तो १५४८ हो गये
साघु ने फिर शान्ति से उत्तर दिया कि-क्षमा धर्म मेरे हृदय में है। इनको नौ से भाग देने पर १७२ पाते हैं इसमें से एक निकाल देने पर १७१ रह राजा को फिर क्रोध पाया, अतः उसने दूसरी बार उस साधु के ऊपर एक दण्डा, जाते हैं जोकि नौ से बंटकर १६ आते हैं उसमें से एक निकाल दिया जाय तो १८ जमा दिया। साधु ने शान्ति-पूर्वक फिर कहा कि-राजन् ! क्षमा तुम्हारे इस रह गया जिसको परस्पर जोड़ देने पर (१+१=) नौ हो जाते हैं। तात्पर्य