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छटा अध्याय अरि गरण मुन्दरणानागत हिन्दर । सागिद कालवेल्लरली | सागु तका* सर्वज्ञदेवतु सर्वागदिम् पेठ्द । सर्वस्व भाषेयस मु* क्तियोळिह सिद्ध जोवर तागुत । व्यक्ताव्यक्तवदामि ॥ स * दिनेन्दु भाषे महाभाषेयागलु । बदिय भाषेगळ् एळ्ळुन्नर म गुः गान्ध सिर! नरक तिर्यच पु * मकद कलेयो तोर्ष वयविध्यद । सम विषमाकद आग * कसेरलेन्टेण्ड समगळ्एरड कूडे । सकळवु विषम एळुव प्रकटिसलध्यात्म योग ॥८॥ सकलद्वि सम्योग भंग ॥६॥ निखिल द्रव्यागमदंग ||१२|| ओटि श्रीम् श्रोष्णु ओम् श्रंक ॥ प्रकटित सर्व भाषांक ॥ १४ ॥ सकल नोसर्व उत्कृष्ट ॥ १६ ॥ अकलंक अनुक्रुष्ट बंध ||१७|| निखिल जघन्य अजघन्य ॥ १८ ॥ शकमय बंधद फाल सकल ध्रुव अध्वांक ||२०|| निखिलय बंध स्वामित्व ॥ २१ ॥ हक बंध सत्रिक ॥२४॥ शक भंगविचय विभाग ||२५|| सकल भागाभाग क्षेत्र सकल कालांतर भाव ॥२८॥ सफलांक अल्पबहुत्व ॥२६॥ सकल बंद नाकु गुसित ॥३०॥ व र प्रति स्थिति अनुभाग सरणिय | सरिय प्रदेशद् य शदिन्द गुरिपसलु बर्पएर । वशदोळ् उन्झालक * ववन्दद ई भाषेगळेल्लवु । श्रवत रिसिदि कर्मबाट || सब सू* नुमथनरवत्त नाल्कुकलेय बल्ल ।
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॥१॥
योगव गुव सर्वज्ञदेवन । काण्व भूवलय रि ॥ पर्वबन्ददल हन्त होगि लोकाग्र । सर्वार्थसिद्धि वळसि ॥२॥ लघु कर्माटदरणुरूप होन्दुत प्रकटदे श्रमदरोळ डगि ||३|| ह वयदोळडगिसि कर्माट लिपियागि । हुदुगिसिदन्क भूवलय ॥४॥ ळिग्द || नररू देवतेगळनक्षर भाषेय । तिरुगिसि गरिसळ बहु ||५|| य ।। विमलव समलव क्रम मूरमग्गिय । गमकदि तिळियलु बहुदु ||६|| । हकद वन्धद बन्ध पाहुड भेदव । नकलन्क सूक्षानुक दरिविम् ॥७॥ विकलांक समयोग भंग ॥१०॥ सकलयु प्रपुनरुक्तांक ॥११॥ १३॥ विकलवागिहसर्व बंध ॥ १५॥ सकल सादि अनादि ॥ १६ ॥ प्रकट बंधांतर काल ॥ २३॥ निखिलद परिमारण स्पर्श ॥२७॥
॥२२॥
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प्रकृति ॥ विरचित गुणकार 'एन्टेन्दु 'बन्दुद। मरळि प्रदम् 'एन्ट'रिद ॥३१॥ र* कळेये ॥ यशस्वति देविय भगळरिवेळनूर । पशु देव नारक भाषे ॥३२॥ कायेन्देन्नवे सवियागिसिकोन्डवि वरद काव्य भूवलय ॥३३॥ जिन धर्मदनुभवद् शु* रधि ॥ घन कर्माटकदादियोऴ् बभाषे । विनयत्व वळवडिसिह ॥ ३४ ॥
६८x८ = ७०४-४-७०० ।
सुनयदुर्नयवडगिहुदु ॥ ३५॥ जिन घन भाषेगळ लेकबहु ॥३६॥ को मतगळकूfsyदु ॥४३॥ नकोनेपोगिसुव भाव ॥४७॥
धर्मवदु मानवर ॥ ३६ ॥ तनुवनेल्लक होक्ड बहुदु ||३७|| मनदोष ऋतु कोल्लुवुबु ||३८|| धनव सम्पदवेल्ल बहुदु ॥ ४० ॥ मनुजर मोक्षकोय्पुवुदु ॥४१॥ तनियाद भाषेगळिदु ॥ ४२ ॥ जिनमागंदणुव्रत बहुदु ॥ ४४ ॥ घनवावेऴ्नु र्हदिनेन्टु ।।४५।। जिन वर्धमान भाषेगळ ॥४६॥ जिनर भूवलयदोळि हुदु ॥४८॥ धनकले अरवत्तनात्कु ॥४६॥ जीवि सितुम बिरुव भूवलय ॥ ५१ ॥
तनगे ताने तन्नोळगे ॥५०॥ भ्रू वलयद सिद्धांतव अंकवम् तीबिकोन्डा अक्षरद ॥ पाव क* रेल्लर्गे मुराह मूरर 1 श्रा विश्वधर्मयेल्लवनु * शगोन्डु स्तात ( बनेल्लव) अनेकांत । रसदोळु श्रोम्कारव मुकम् ॥ यशवादक्षरदोवि बेसेविह। होसदादनादिय ग्रन्थ
॥५२॥ 11"