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________________ SX सिरि भूवनय सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलोर-दिल्ली ब्राह्मी देवी वृषभनाथ भगवान की बड़ी पुत्री होने के कारण ब्राह्मी मिलते हैं। अतः यह सर्व माषामय न होकर यदि एक ही भाषा में होता तो लिपि को ही पहली लिपि माना गया है। दूसरी लिपि यवनांक लिपि है ऐसा। उसी के अनुसार इसका प्रचार हो सकता था। ऐसा कुछ लोग कहते हैं परन्तु अन्य प्राचार्यों का भी मत है ।।१४६।। अनेक भाषायें कनड़ी से सम्मिश्रित होकर गणित रूप से उनका प्रादुर्भाव होता। "दोषउपरिका तीसरी भाषण है, बराटिका (वराट) चौथी है। सर्द-1 दिगम्बर जैनाचार्य कुमुदेन्दु ने अपने स्वतन्त्र अनुभव द्वारा यद्यपि इस मूवलय की जी, अथवा सारसापिका लिपि पांचवीं है । प्राभृतिका घटी है ॥१४॥ रचना की है फिर भी यह काव्य परम्परा से भगवान जिनेन्द्र देव के मुख से उच्चतारिका सातवीं हैं, पुस्तिकाक्षर पाठवीं है, भोगयवत्ता नौवीं है। प्रगट हुए शब्दों में से चुन कर बनाया गया है। इस तरह प्रामाणिक परम्परा बेदनतिका दशवी है। निन्हतिका ११ वी, सरमालांक १२वीं, परम गरिणता १३ ॥ से यह भगवान की वाणी रूप काव्य हैं । चोथे काल में भी यह अंकमयी भाषा वीं है, १४ वीं गान्धर्व, १५ पादर्श, १६ माहेश्वरी, १७ दरमा १८ दोलिदी थी। इसलिए आचार्य कुमुदेन्दु 'उस काल की भाषा को भी गणित से ले ये सब अङ्क लिपियां जाननी चाहिए ॥१४॥ सकते हैं, ऐसा लिखा है। दिगम्बर मुनियों के संघ भेद के कारण भाषाओं में भी भेद देखने में । यशस्वती देवी की छोटी बहिन सुनन्दा के गर्भ से पहले कामदेव बाहुआया है। परन्तु इन में भेद रूप समझकर परस्पर विरोध रूप में ग्रहण नहीं । बली का जन्म हया । वे काम शास्त्र तथा पायुर्वेद के ज्ञाता थे। किन्तु उन्होंने करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जितनी भी प्रचलित भाषायें हैं उनमें भेद उन दोनों विषय में त्याग तथा रस सिद्धि को बनलाया ॥१६॥ मानना चाहिए ।।१४८ -१६०॥ श्री गोम्मटदेव (बाहुबली) कामदेवों में पहले कामदेव (अपने समय में ऊपर कही हई बातों को नारको जीव, तिथंच जीव नहीं जानते हैं। सबसे अधिक सुन्दर) थे। इसके सिवाय वे प्रथम केवली भी थे, अतः उनको परिशुद्ध अंक को देवता लोग, मनुष्य जान सकते हैं । कोई लिपि न होने पर भी। हमारा नमस्कार हो। ध्वनि शास्त्र के अवलम्बन से केवल नो अंकों से ही लिख सकते हैं कह भी । प्रश्न--भगबान ऋषभनाथ को बाहुबली से पहले केवल ज्ञान हुमा था सकते हैं और सुन सकते हैं, ऐसे सरसांक लिपि को अक्षर लिपि रूप में परिवर्तन । अतः बाहुबली को प्रथम केवलो कहना उचित नहीं । कर सकते हैं ॥१६॥ विवेचन श्री भुवलय ग्रन्थ में एक भी अक्षर नहीं है १ से लेकर ६४ उत्तर-बाहुबली भगवान ऋषभनाथ से पहले मुक्त हुए हैं अतः उनको तक प्रारूप में रहने वाले १२७० चक्र है। उन चकों के द्वारा १६००० अंक! प्रथम केबली कहा गया है। चक्रों को निकाला जाता है। सुन्दरी ने अपने पिता से भी २५ धनुष अधिक ऊंचे अपने भाई बाहुभगवान ऋषभनाथ ने यशस्वती और दोनों पुत्रियों ब्राह्मी, सुन्दरी को । बला का दर सेको बली को देखकर भक्ति को ओर जगत में यही सबसे अधिक विशानकाय अक्षर तथा अंक पति से भूवलय पढाया था। उनकी देशभाषा में पाने वाला परमात्मा है, ऐसा अनुभव किया ॥१६४|| काव्य रस, शब्द रीति श्रादि जो उस समय थी उसको हम पाज भी भूवलय सुन्दरी देवी ने अपने बड़े भाई से चक्रवन्ध गरिगत को जाना और १० द्वारा पढ़ सकते हैं । ऐसा कुमुदेन्दु प्राचार्य कहते हैं ।।१६२॥ के भीतर ६ अंक को गर्भित हुआ समझा ।।१६।। विवेचन-यह भूवलय ग्रन्थ प्राधुनिक बोली में लिखा गया है अतः पाज। उस गणित के मानचित्र (छबि) में अन्तर्भूत सत्मांक है ॥१६६॥ . कल के विद्वान इसको दशवीं शताब्दी का मानते हैं अथवा अमोघवर्ष नृपतुग समस्त कामदेवों में प्रथम बाहुबली द्वारा कहा हुआ यह अंक है ।।१६७।। के तथा इन्द्रनंदी घतावतार के ग्रन्थ के तथा और भी कुछ श्लोक भूवलय में! जन्म मरण रूपी भवभय को हरण करने वाला यह अंक है ।।१६।।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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