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________________ सिरि भूवलय समर्थि सिवि संघ बैंगलोर-बिल्ली का अर्थ आत्म-द्रव्य है। स्वसमय वक्तव्यता में केवल आत्म द्रव्य का कथन है। इसी ६४ अक्षर मय काव्य-बन्ध को श्री ऋषमदेव भगवान ने सुन्दरी पर-समय का अर्थ पुद्गल आदि द्रव्य हैं । उसका जहां वर्णन हो उसे 'पर-समय की हथेली में एक आदि नौ अंकों में गभित करके लिखा था जिन नौ प्रकों को वक्तव्यता' कहते हैं। जिसमें 'स्व' यानी आत्म-द्रव्य की और पर पुद्गल द्रव्य । पहाड़ों के प्रस्ताव रूप में करने से उन में विश्व भर को महिमा आषाती है जिस की बात आई हो उसे उभय वक्तव्यता कहते हैं। को लिपि मंक गणित कहलाती है ॥१४१॥ इन तीनों तरह की बक्तव्यताओं में से इस भूवलय ग्रन्थ में स्वसमय अयवा प्राकृत सस्कृतमागधापिशाचभाषाश्च । बक्तव्यता की प्रधानता है ॥१३॥ षष्ठोत्तर [१५] भेदों देशविशेषावपभ्रंशः । [९६) यह भूवलय-सहज अंकमय काव्य को उत्पन्न करने वाला है ॥१३२।।। कर्णाटमागधमालवलाटगौडगुर्जरप्रत्येकत्रय-- इस अनजय प्रम को सनो पहले गोमट देने प्रकट किया था ।।१३३॥ मित्यष्टादशमहाभाषा [१७] यह भूवलय ग्रन्थ समस्त जीवों के लिए अध्यात्म विद्या को प्रगट करने सर्वभाषामयीभाषा विश्वविद्यावभासिने ।११२॥ वाला है ।।१३४॥ इसके सिवाय और भी समस्त प्रकार की विद्यानों को सिखलाने बाला त्रिषष्टिश्चतुःषष्टिवावर्णाः शुभमते मताः। है ॥१३॥ प्राकृते संस्कृते चा [१३८] पिस्वयं प्रोक्ताःस्वयम्भुवा ॥१३॥ मरण को जीतकर नित्य जीवन देने वाला यह भूवलय ग्रन्थ है।।१३६॥ प्रकारादिहकारान्ता शुद्धां मुक्तावलीमिव । इस भूवलय में जो चक्रांक है सो सब धवल बिन्दु के समान हैं ॥१३७।। स्वरव्यजनभेदेन द्विधा भेदमुवंयु-११४२।षीम् । श्री स्वयम्भू भगवान के बताए गए हये ६३ प्रथबा ६४ प्रक्षर प्राकृत अयोगवाहपर्यन्तां सर्वविद्यास, सङ्गताम् । भाषा में तथा संस्कृत भाषा में विद्यमान हैं ॥१३८।। मायोगाक्षर सम्भूति नकबीजाक्षरश्चि-[१४३] ताम् । ये सभी अक्षराङ्क पवित्र हैं और विश्व को नापने वाले हैं। इन अक्षरों समवादी दधत् ब्राह्मोमेधाविन्यपि सुन्दरी। को परस्पर संयोगात्मक करके अनेक प्रकार के बन्धनों में बाँध कर चक्राकार पद्म रूप में बनाने वाला यह भूवलय है। चक्र के भीतर २७४२७ = ७२६ सुन्दरी गरिणतस्थानं क्रमैः सम्यगधास्यत ॥१४४।। तातो भगवतोवक्ता निःसृताक्षरावलीम् । पारे बनते हैं ॥१३६॥ इस भूवलय काव्य को पादिनाथ भगवान ने श्री ब्राह्मी देवी की हथेली नम इति व्यक्तांस मंगलां सिद्ध मातृकाम् ॥१४॥ में लिख कर प्रगट किया था ब्राह्मी देवी की हथेली अत्यन्त मृदु थी इसलिए यह अर्थ-भगवान ऋषभनाथ के मुख से प्रगट हुए प्रकार से हकार तक भूवलय भी अतिशय कोमलरूप है । उपयुक्त अक्षरों को गुणाकार रूप में लाकर अयोगवाह अक्षरों (क ख पफ) सहित शुद्ध मोतियों की माला की तरह वर्णरत्नहार की भांति उनसे गुंथा हुआ यह भूबलय काव्य है । इस भूवलय ग्रन्थ को। माला को ब्राह्मी ने धारण किया । जो (वर्गमाला) कि स्वर और व्यंजनों श्री भगवान ने ब्राह्मी देवी की हथेली में लिखा था और कागज, कलम तथा के भेद से दो प्रकार है, समस्त विद्याओं से संगत है, अनेक बीजाक्षरों से भरी स्याही की सहायता के बिना सिर्फ अपने अंगुष्ठ से लिखा था और पाठ-पाठ हुई है, नमःसिद्धेभ्यः से प्रगट हुई सिद्धमात का है। भगवान ऋषभ नाथ की अक्षरों वाली पाठ पंक्तियों में लिखा था जो कि लेख कहलाया। इसलिए उसका दूसरी पुत्री सुन्दरी ने क्रम से ६ अंकों द्वारा गरिणत को मोतियों की माला को दूसरा नाम 'खरोष्ट' पड़ गया ॥१४०।। । की तरह धारण किया।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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