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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलौर-दिल्ली
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ऋग्वेद ऋषिमंडल स्तोत्र आदि इसी भाषा द्वारा श्री भूवलय में कहे
गये हैं। EEEEEEEEEEEEEEEEEEE
जिस देश में जो भाषा बोली जाती है, वह उसी देश में लोगों का केवलज्ञान आदि जान ऋद्धि. जंधा प्रादि से आकाश में गमन करा देने उपकार करती है और उसे "संदर्भ" कहते हैं। ४८ 'चित्रक भाषा' (चित्रों द्वारा वाली चारण-ऋद्धि और अणिमादिक अतिशय प्रदान करने वाली समस्त ६४ कही जाने वाली भाषा) अर्थात् चित्र बना कर अपना अभिप्राय बताना, सब
ऋद्धियों की सिद्धि कर देने वाला यह नवमांक है । सदा सार-मास रहने वाला ! टेला में सपाल मा से लोगों का उपकार करती हैं। जैसे कि-चीनी भाषा चित्र दिव्य विद्या रूप यह नवमांक है। अध्यात्म-सिद्धि का साधन करा देने वाला भाषा है । कहीं लोगों में परस्पर गाली गलौज हो गयी तो वहां वाले अपने नवमांक है । अष्ट कर्मों को नष्ट कर देने वाला नवमांक है । अथवा शुद्ध कर्मा- । सामने दो स्त्रियों का चित्र लिख देते हैं। यदि 'मारपीट हो गई' यह कहना टक भाषा का महानकाच्य है 1 अथवा घाति-कर्मों के नष्ट हो जाने के बाद बचे होता है तो तीन अर्थात् बहुतसी स्त्रियों का चित्र बना देते हैं। इसका अभिप्राय हए ८५ अर्थात कर्मों का वर्णन करने वाला यह काव्य है। इसलिए (१) गद्ध यह है कि स्त्री का स्वभाव सब देशों में एक जैसा रहता है। जहां दो स्त्रियां कर्माटक है ॥२८॥
इकट्ठी हुई कि बातों-बातों में गाली देने लगती हैं और जहां तीन पादि ज्यादा यशस्वती देवी द्वारा बोली जाने वाली प्रावात भाषा १, लिपि २, रस एकत्र हुई तो मारपीट भी करने लगती हैं। इसीलिए चित्र में २-३ आदि भरी सरस नित्य संस्कृत भाषा ३, अस्मान् द्राविड़ा ४, (१ कानड़ी, २ तामिल, स्त्रियां दिखाते हैं । ३ तेलङ्गी, ४ मलेयाल और ५ तुल) इन पांच भाषाओं को पंच द्रविड़ भाषा भगवान ऋषभदेव ने अपनी बड़ी पुत्री को जो लिपि (अक्षर विद्या) कहते हैं ५, महाराण६, गुर्जर ७, अंगद, कलिंग ६, काश्मीर १०, काम्भोज दहिने हाथ की हथेली पर लिख कर सिखाई थी उसमें जो अक्षर हथेली के ११, हम्मीर १२, शौरसेनी १३, रुहाली (पाली) १४, तिब्बत १५, बंगी। मीधे मार्ग पर लिखे गये थे उनका प्राश्रय लेकर बोली जाने वाली भाषा एक इत्यादि सात सौ भापायें हैं। बंग १६, विषहर ब्राह्मी । नेमि 'विजयाई १७, प्रकार की हई और हथेली के निम्न भाग में लिखी गई लिपि (अक्षर) का पद्म १८, वैधी १६, वैशाली २०, सौराष्ट्र २१, खरोष्ट्र २२, नीरोष्टा २३, पाश्रय लेकर जो भाषा बोली गई वह दूसरी प्रकार की भाषा हुई। इसी प्रकार अपभ्रंशिका २४, पैशाची २५, रक्ताक्षर २६, ऋष्ट २७, कुसुमाजी २८, सुमना- दक्षिण देश के भिन्न-भिन्न भागों में बोली जाने वाली पाठ भाषायें हैं। जी २६, ऐन्द्रध्वजा ३०, रसज्वलज ३१, महा पद्म ३२, अर्द्ध मागधी ३३।।
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अथवायहां तक ५८ श्लोक हो गये । आगे ५६ श्लोक से लिखेंगे ॥२६ से ५८ तक ।।
प्राकृतसंस्कृतमागधपिशाचभाषाय सूरासेनीय । ३४ पारस, ३५ पारस, ३६ मारस्वन, ३७ बारस, ३८ वीर वा, ३६ मालव, ४० लाट (लाड देश में इस भाषा के अनेक भेद है)
छट्टोत्तर मेदाहिदेशविशेषादपभ्रंशः ।। ४१ गौढ़ (गौड़ देश के पास रहने वाले मागध), ४२ मागध के बाहर का देश अर्थ-प्राकृत, संस्कृत, मागध, पिशाच, शौरसेनी तथा अपभ्रंश इन मूल विहार, ४३ नौ अक्षर वाले, ४४ कान्य-कुब्ज, ४५ बराह (वराड), ४६ ऋद्धि! ६ भाषाओं का ३ से गुणाकार करने पर १८ महाभाषाएँ ऋम से होती प्राप्ति को कर देने वाले वैश्रवण, ४७ शुद्ध बेदान्त भाषा तथा दो ढाई हजार है ॥६५ ६६॥ वर्ष पहिले की संस्कृत भाषा को गीवारण भाषा कहते हैं। भूवलय के श्रुतावतार पुनः कर्णाटक, मागध, मालव, लाट, गौड और गुर्जर इन मूल ६ नामक दूसरे खण्ड के संस्कृत विभाग में गीर्वाण इसी को कहा है। | भाषामों का ३ से गुणा करने पर १८ महामाषाय हैं ।।१७॥