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________________ सिरि भूवलय गर्वार्थ सिदि संघ बैंगलोर- विल्मी दाहिनी तरफ से मिलाने पर ६ और ३= पाता है और बांयी तरफ से नवमांक प्राप्त हो जाने पर हो जाता है। नवम अङ्क प्राप्त हो जाने के बाद ३ और ६ मिला देने से ह पाता है। इस प्रकार इन अंकों में समन्वय कर देना ही संख्या का जन्म हो जाता है अर्थात् के बाद एक, दो बोले जाते हैं इसोहै। यह क्रिया सम्यक् ज्ञान मात्र से ही साध्य है, अन्यथा नहीं । यही ज्ञान सभी लिए जन्म मरण रूप दोनों अवस्थानों में नवमांक रहता है ।।१२॥ मतों को समन्वय करने वाला है, और यही सम्यक्रज्ञान दर्शन चारित्र के साथ । सुख दुःख दोनों में नवमांक काम आता है ॥१३॥ मिलकर रत्नत्रय स्वरूप करके छोड़ देता है । वह रत्नत्रय ही आत्मा का स्वरूप छद्मस्थ की बुद्धि के अगम्य नवमांक की गम्भीरता है ।।१४॥ है। सम्पूर्ण मल दोषों से रहित होने के कारण अनंतानंत वर्ग स्थान के ऊपर श्री वीर भगवान का ज्ञान-गम्य यह नवमांक है ॥१५॥ जाकर सब को जान लेता है। इसी तरह अनंतानन्त वर्ग स्थान के नीचे उतर कर्म बन के लिए दावानल के समान जलाने वाला नवमांक है ॥१६॥ कर सर्वोत्कृष्ट असंख्यात तक आकर; वहां से जघन्य असंख्यात में उतर कर ऋषि-सूत्र द्वादशांग नवमांक से बद्ध है ॥१७॥ वहां से पुनः सर्वोत्कृष्ट असंख्यात तक आकर और पुन: वहां से २ अंक तक समस्त विद्याओं का साधक नवमांक है ।।१८। पाकर वहां से गणनातीत होकर एक अक्षर रूप में होता है। अब कुमुदेन्दु वाणी को पवित्र करने वाला नवमांक है ॥१६॥ प्राचार्य इस नवमांक की महिमा का वर्णन करते हैं ।।३।। विश्व का रक्षक यह नवमांक है ॥२०॥ ज्ञानावरण कर्म का सर्वथा क्षय करके केवल ज्ञान प्राप्त कर अनन्त विश्व में व्याप्त नवमांक है ॥२१॥ सुख देने वाला अन्तरंग बहिरंग लक्ष्मी का प्राधयभूत यह नवा ॥४॥ श्री वीर भगवान का सिद्धान्त नवमांक है ।।२२।। यह नवमांक जहां भी देखें, सभी जगह पूर्णाङ्क दिखाई देता है नवांक। से पहिले के अंक मार्ग और मलिन दोख पड़ते हैं। उनकों को अपने अन्त श्री वीरसेन प्राचार्य का सिद्धान्त नवमांक है ॥२३॥ मुख करके पूर्ण और विशुद्ध वनाने वाला यह नवमांक है ॥५॥ हमारा (कुमुदेन्दु प्राचार्य का) सिद्धान्त नवमांक है ॥२४॥ भावार्थ:-नव ९ अंक से पहिले के ग्रंक एक दो आदि सब ही अपूर्ण इन सब ६ अङ्कों का रक्षक भूवलय है ।।२।। हैं क्योंकि उनसे अधिका-अधिक संख्या बाने अंक मौजूद हैं। एक नवमांक हो । यह नवमांक वरद हाथ के समान है, नव पर पंच परमेष्ठियों का इष्ट ऐसा है जहां संख्या पूर्ण हो जाती है क्योंकि उसके पागे कोई अंक ही नहीं है। है, सरस साहित्य के निर्माण में प्रधान है । क्षायिक नव केवल लब्धि (सायिक यह नवमांक पावन और परिशुद्ध है ।।६।। सम्यक्त्व, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त दान, अनन्त लाभ, विश्व भर में व्याप्त यह नवमांक है ॥७॥ अनन्त भोग, अनन्त उपभोग, अनन्त बीयं) प्रदान करने वाला है ॥२६॥ हजार, लाग्न प्रादि गिनतो में भो नवमांक है ।।८।। रत्न हार को मध्यवर्ती प्रधान मणि के समान ही गणित का यह अङ्क पाक्न मूच्यग्र में भी नवमांक है अर्थात् छोटे से छोटे भाग में भी नवमांक । प्रधान अंक (नब) है । ३ अंक को ३ अंक से गुणा करने पर यह नवमांक है और बड़े से बड़े भाग में भी नवमांक है ।।।। होता है । सो, हजार, लाख, करोड़ ग्रादि जितनी संस्था है उनमें एक संख्या श्री विश्व अर्थात् अंतरङ्ग विश्व में भी नवमाक है ।।१०।। घटा दी जाय तो नो अंक हो सर्वत्र दिखाई पड़ता है। जैसे १०० में से { घटा हजारों करोड़ों आदि रूप से रहने वाला नवमाङ्क है ।।११।। देने से हो जाता है, १००० में से १ घटा दें तो हो जाता है, १००० जन्म मरण जिस प्रकार परस्पर सापेक्ष है, वैसे ही नवमांक की अपेक्षा १०० में से १ घटा दें तो EEEEE हो जाता है, १००००००० में से १ घटा दें अन्य सभी अङ्क रखते हैं। मरण अन्त को कहते हैं, संख्या का अन्त-मरण, तो RREEEEE हो जाते हैं ॥२७॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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