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________________ वा चक्रान्कम् ॥१३६॥ धावल्माय भातिनक । रा* 'पिस्वयम् प्रविष्टिहि चतुष्टि fसरि भूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलौर-दिल्ली रि* विगळल्लरु कूडि महिमेय लिपिगळ ! वशगोन्डु भाषेय सर मर हसगोळिसुत ईगरण हिन्दरण मुन्वे । यशवप्प मातुगळन्क ॥१२॥ या व भाषेगळलि एष्टक वेन्तुय । ठाविन शन्केगे तावु ।। तायु स मन्वयमोळिसि समाधान । वीव सिद्धान्त भूवलय ॥१२६॥ ई विश्ववाळुव अन्क ॥१२७॥ श्री वोरवारिणय ग्रंक १२८॥ साविरलकृषशन्केगळ ॥१२६॥ ठाविन उत्तरदन्क ॥१३०॥ पावन स्वसमयदंक ॥१३१॥ आविद्य काव्यद अंक ॥१३२॥ कावनाडय मातिनंक ॥१३३॥ विश्वव्यात्मदंक ॥१३४॥ तीविकोन्छिह दिव्य अंक ॥१३५॥ सावनळिसुव चक्रान्कम् ॥१३६॥ धावल्य बिन्दुविनन्क ॥१३७।। प्रा विश्ववंक 'रिषष्टि हि चतुहषष्टि' । पावनवादा ग्रंक म* तीवि 'रावरगाह शुभमतेमताहंदा काव 'प्राकृतेसंस्कृतेचा॥१३॥ रापिस्वयम् प्रोक्ताह स्वयम्भुवा' । प्रापद विरुवन्कन बन॥धापद सम्योगदोळ अरबत्नाल्कु । श्रीपदपद्म सम्गुरिगसे ॥१३॥ णु णुपाद बाह्मिय एडगय्योळंकित । गुगनद सरमाले ब न धापद सम्योगदोळु पर्वानाल्कु। श्री पद पद्म सम्गुरिगसे ॥१४॥ स* रस सउंदरिय बलद कम्योळच्चोस्ति । अरवत्नाल्कु ध* दविनोळ आदीशवरेदखरोष्टिय। तनियाद बृषभाकितधु ॥१४१॥ र सयुतवा 'अकारादि हकारान्ताम्' । वश 'शुद्धाम् मुक्तावली म् क रस 'मिवस्वर व्यन्जनमीदेन द्वि । वश 'दाभेद युपय्यु ॥१४सा ए* वर 'कोम् प्रयोगवाह द 'परयंताम् सरव' । विवर विद्यासु' म* 'सर्ग'। नव 'ताम्अयोगाक्षरसम्भूतिम्'। सवि नरकबीचाक्षरयश्वि म नु 'ताम् समवादि दधत्वाहि मेधा । विन्पति सुन्दरो, बर भ घन 'सुन्दरी गरिणतमस्थानम्'स'क्रमहि । धनवह'सम्यगधास्यता१४॥ का र ततो भगवतो नानिहिस्रुता । कषरावलोम सिद्ध व ह 'नमई'। सरतिव्यक्तसुमनगलाम् सिद्ध' गुरु मात्रुकाम् 'स भूघलय दर रुशनमाडलन्याचार्य वानगमय । परियलि ब्राझियु व या दे। हिरियळादुदरिन्द मोदलिन लिपियंक । एरडनेयदु यवनांक१४६ म रळिद दोष उपरिका मूर। वराटिका नाल्कने अंक ॥ सरव जे* खरसापिका लिपि अाइदंक । वरप्रभारात्रिका प्रारम् ॥१४७॥ सर उच्चतारिका एम् ॥१४॥ सर पुस्तिकाकषर एन्टु ॥१४६॥ वरद भोगयवत्ता नवमा ॥१५०।। सर वेदनतिका हत्तु ॥१५॥ सिरि निन्हतिकाहन्मोंदु ॥१५२॥ सर माले अंक हनेरडु ॥१५३।। परम गरिपत हदिमूरु ।।१५४॥ सर हदिनाल्कु गान्धर्व ।।१५।। सरि हदिनय्दु आदर्श ॥१५६।। वर माहेश्वरि हदिनारु ॥१५७॥ बरुव दामा हदिनेछु ॥१५८॥ गुरु बोलिदि हदिनेन्दु ॥१५६।। इरुविवेल्ल अंक लिपियु ॥१६॥ ति रियन्च नारकररियद हदिनेन्टु । परिशुद्ध लिपियंक व* वनु । बरेयलु बहुदुहेळ केळलु बहुदव । सरसान्क प्रकपर लिपियोळ्१६१ रके सभाव काव्य सनदर्भदुचित नुडि । यशस्वती देविय मर गळ ।। होसदाद रोति देसिक दरिकेयनेल्ल । हेसरिटुकलियलु बहुदु१६२ या शस्वतियममन तगि सुननदेय । बसरलि बनद् अन्गजन न। यशद कामायुर् वेददोळ त्यागव । रससिद्धियिम् कारणबहुदु ॥१६३॥ रण वमन्मथ रोळगादिय मन्मथ । अवनादि केवलिनम्न हक सुविशाल कायद परमात्म रूपनु । अनिन्द सवन्दरि कन्ड ॥१६॥ अवधरिसुत तन्गिर्दन्क ॥१६५॥ छवियोळ कारपब सत्यान्क ।।१६६॥ नवमन्मथरादियन्क ॥१६७।। भवभय हरण दिव्यान्क ।।१६८।। अवरोळ प्रतिलोमदन्क ॥१६६॥ अवनु कूडलु मोमबत्त प्रोमदु १७०॥ नवकार मन्त्र प्रोम्दु ॥१७१२॥ सवरणर धर्मानक प्रोमदु ॥१७२॥ सवियामिसिरुब भूवलय ॥१७३॥ अनुलोम १-२-३-४-५-६-७-८-६ प्रतिलोम 8-८-७-७-५-४-३-२-१ लब्धानक १-१-१-१-१-१,१-१-१-० अोम्गत्प्रोमदु गिक जद हत्तनु भोमबत्तागिसिदन्क । प्रदरनुलोमान्कपद पूछ । प्रदरलिवश्वसोननेय बिट्टमोमबत तु । पदगळकाव्यभूवलय ।१७४
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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