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________________ | ( ५६ ) राग ख्याल और सब थोथी बातें, भज ले श्रीभगवान ॥ टेक ॥ प्रभु बिन पालक कोइ न तेरा, स्वारथमीत जहान ॥ परवनिता जननी सम गिननी, परधन जान पखान । इन अमलों परमेसुर राजी, भाषै वेद पुरान ॥ १ ॥ और. ॥ जिस उर अन्तर बसत निरंतर, नारी औगुन खान । तहां कहां साहिबका बासा, दो खांडे इक म्यान ॥ २ ॥ और. । यह मत सतगुरुका उर धरना, करना कहिं न गुमान । 'भूधर' भजन न पलक विसरना, मरना मित्र निदान ॥ ३ ॥ और. ॥ हे आत्मन् ! तू भगवान का भजन कर, इसके अतिरिक्त सारे क्रिया-कलाप, सारी बातें सारहीन हैं, निस्सार हैं। इस जगत में प्रभु के अलावा कोई भी तेरा अपना हितकारी मित्र, तेरा निर्वाह करनेवाला, पालनेवाला नहीं है। तू परस्त्री को अपनी माता के समान और पराये धन को पाषाण के समान जान । काम और परिग्रह के त्याग के आचरण से परमात्मा की सी चर्चा होती है, ऐसा धर्मग्रन्थों, आगमों, पुराणों में कहा गया है। जिसके हृदय में निरन्तर कामवासना रहती है वह हृदय ही सब दुर्गुणों की खान है अर्थात् कामवासना अवगुणों की खान है जिसके हृदय में कामवासना रहती हैं, उसके हृदय में प्रभु का स्मरण नहीं होता । प्रभु की आराधना और कामवासना ये दोनों एकसाथ एक स्थान पर नहीं रह सकते जैसे कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह पातीं। श्री सत्गुरु का यह उपदेश अपने हृदय में धारण कर और उसका कहीं भी, कभी भी अभिमान मत करना | भूधरदास कहते हैं कि मृत्यु तो एक दिन अवश्य आयेगी ही, तू एक पल के लिए भी प्रभु के स्मरण-भजन से च्युत न होना अर्थात् प्रभु विस्मरण मत करना । I भूधर भजन सौरभ ७९
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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