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________________ (५७) राग सोरठ सुनि ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया ॥ टेक॥ टुक विश्वास किया जिन तेरा, सो मूरख पिछताया। आपा तनक दिखाय बीज ज्यों, मूढमती ललचाया। करि मद अंध धर्म हर लीनौं, अन्त नरक पहुंचाया॥१॥ सुनि. ।। केते कंत किये हैं कुलटा, तो भी मन न अघाया। किसहीसौं नहिं प्रीति निबाही; वह तजि और लुभाया॥२॥ सुनि.॥ . 'भूधर' छलत फिर यह सबकों, भौंदू करि जग पाया। जो इस ठगनीकों ठग बैठे, मैं तिसको सिर नाया॥३॥ सुनि.॥ हे मानव, सुनो, यह माया (धन) ठगनी है, इसने सारे जगत को ठग लिया है। जिस किसी ने भी इस पर विश्वास किया, वह मूरख बनकर पछताया है। बिजली-सी चमक को देखकर जो मूर्ख लालच में आ गया, उसको मदांध कर इसने धर्मच्युत कर दिया और फिर अन्त में उसे नरक में पहुँचा दिया। इस माया ने कितने लोगों को अपना स्वामी बनाया किन्तु फिर भी इसका मन नहीं भरा। इसने किसी से भी अपनी प्रीति नहीं निभाई, यह सदैव एक को छोड़कर दूसरे को लुभाती रही है। भूधरदास कहते हैं कि माया सबको छलती-फिरती है, जिसने इस पर विश्वास किया, उसी को यह ठगती रही है, सारे जगत को भोदू बना रही है। जिसने इस ठगिनी माया को जीत लिया है, मैं उसे नमन करता हूँ। माया = धन-वैभव, लक्ष्मी। कंत = पति। ८० भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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