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________________ (५५) राग मलार अब मेरे समकित सावन आयो॥टेक।। बीति कुराति मिथ्यामति ग्रीषम, पावस सहज सुहायो॥ अनुभव दामिनि दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो । बोलै विमल विवेक पपीहा, सुमति सुहागिनि भायो॥१॥ अब मेरे.॥ गुरुधुनि गरज सुनत सुख उपजै, मोर सुमन विहसायो। साधक भाव अंकूर उठे बहु, जित तित हरष सवायो॥२॥ अब मेरे.॥ भूल धूल कहिं भूल न सूझत, समरस जल झर लायो। 'भूधर' को निकसै अब बाहिर, निज निरचूधर पायो।। ३ । अब मेरे.॥ अब मेरे जीवन में सम्यक्त्वरूपी सावन आ गया है। मिथ्यात्व, कुरीति व कुमतिरूप ग्रीष्म की तपन अन्व समाप्त हो गई, इसलिए यह सम्यक्त्वरूपी पावस (वर्षा) ऋतु अत्यन्त सुहावनी लगती है। अब आत्मानुभवरूपी विद्युत (बिजली) को चमकार होने लगी है, आनन्द और अनुराग (भक्ति) रूपी बादलों की घटा घनी हो चली है, जिसे देखकर विवेकरूपी पपीहे की ध्वनि मुखरित होने लगी है, सुनाई देने लगी है जो सुमतिरूपी सुहागिन को अत्यन्त प्रियकर है। जैसे बादलों को देखकर मोर पक्षी का मन नाच उठता है, आनन्दित होता है, उसी प्रकार सद्गुरु की उपदेशरूपी गर्जन को सुनकर साधक को सुखानुभूति होती है । साधक के हृदय में बहुप्रकार से भक्ति-भाव के अंकुर फूटने लगते हैं और आनंद की अनुभूति में सरस अभिवृद्धि होती है। ___ जैसे बरसात के कारण धूलि भीगकर जम जाती है, उसकी प्रवृत्ति/चंचलता नष्ट हो जाती है। उसी प्रकार समतारस की धारा बरसने से अब भूलरूपी (भ्रमरूपी) धूल अब भूल से भी कहीं दिखाई नहीं पड़ती। भूधरदास कहते हैं कि जिसे निजानन्द की अनुभूति अपने ही भीतर होने लगी हो तो उसे बाहर निकलने से क्या प्रयोजन रह गया! सुरति - भक्ति, अनुराग, आनन्द । विहसायो = प्रसन्न होना। निरचू = बिल्कुल । ७८ भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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