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देख्यो री ! कहीं नेमिकुमार ॥
नैंननि प्यारो नाथ हमारो, प्रान-जीवन प्रानन-आधार ॥ देख्यो. ॥
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राग ख्याल
पीव वियोग विधा बहु पीरी, पीरी भई हलदी उनहार । होउं हरी तबही जब भेटों, श्यामवरन सुन्दर भरतार ॥ १ ॥ देख्यो. ॥
विरह नदी असराल बह्रै डर, बूढ़त हौं धामें निरधार । 'भूधर' प्रभु पिय खेवटिया बिन, समरथ कौन उतारनहार ॥। २ ।। देख्यो. ॥
• राजुल अपनी सखी से अपने प्रिय नेमिकुमार के बारे में पूछती है - हे सखी! क्या कहीं नेमिकुमार को देखा है ? नैनों को प्यारे लगनेवाले वे हमारे स्वामी हमारे प्राण हैं, जीवन हैं, प्राणों के आधार हैं।
राजुल को प्रियतम की वियोग-व्यथा अत्यन्त पीड़ादायक है, दुःखदायक है, उस वियोग में वह हल्दी के समान पीली पड़ गई हैं। श्याम वर्ण के सुन्दर प्रियतम से भेंट होने पर ही वह हरी हो सकती हैं अर्थात् तब ही वह प्रसन्नता पुनः लौट सकती है, प्राप्त हो सकती है।
विरह - विछोह की गहनता में, अथाह प्रवाह / नदी में निराधार ( यह आधारहीन) हृदय डूब रहा है, विकल हो रहा है। भूधरदास कहते हैं कि प्रभु प्रियतम के सिवा इस दुखसागर से पार उतारने में अन्य कोई खेवटिया नहीं है, अन्य कोई समर्थ नहीं है ।
पीरी पीड़ा की। पीरी पीली। उनहार
भूधर भजन सौरभ
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समान असराल
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अथाह । बूढ़त डूबना ।
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