________________
( १३ ) राग विहागरो
नेमि बिना न रहै मेरो जियरा ॥ टेक ॥
हेर री हेली तपत डर कैसो, लावत क्यों निज हाथ न नियरा ॥ १ ॥ करि करि दूर कपूर कमल दल, लगत करूर कलाधर सियरा ॥ २ ॥ 'भूधर' के प्रभु नेमि पिया बिन, शीतल होय न राजुल हियरा ॥
३ ॥
राजुल अपनी सखी से अपनी व्यथा कह रही हैं - हे सखी! नेमिनाथ के बिन्ग मेरा जी (मन) नहीं लगता। विरह में मेरा हृदय अग्नि की भाँति कैसा तप रहा है, यह देखने के लिए यह अनुभव करने के लिए तू मेरा हाथ उसके समीप क्यों नहीं ले जाती !
नेमिनाथ के वियोग में मुझे कपूर, कमलपुष्प और शीतल चन्द्रमा भी क्रूर असुहावने लगते हैं, उनका सामीप्य भी नहीं सुहाता, उन्हें भी दूर करना पड़ता है ।
1
भूरदास कहते हैं कि मेरे प्रभु और राजुल के प्रिय नेमिनाथ के बिना राजुल के हृदय को किसी भाँति भी शान्ति नहीं है यानी शीतलता अनुभव नहीं हो रहीं ।
हेली सहेली। नियरा = निकट करूर क्रूर सियरा शीतल, ठण्डा ।
=
१४
म
भूधर भजन सौरभ