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________________ (१२) राग ख्याल मा विलंब न लाव पठाव तहां री, जहँ जगपति पिय प्यारो॥ और न मोहि सुहाय, कछु अब, दीसै जगत अंधारो री॥ मैं श्रीनेमिदिवाकरको कब, देखों बदन उजारो। बिन विन देखें मुरझाय रह्यो है, उर अरविंद हमारो री॥१॥ तन छाया न्यौं संग रहौंगी, वे छांडहिं तो छारो। विन अपराध दंड मोहि दीनो, कहा चलै मेरो चारो ॥२॥ इहि विधि रागउदय राजुल., सह्यो विरह दुःख भारो। पी, ज्ञानभान बल विनश्यो, मोह महातम कारो री॥३॥ पियके पैं. पैंडो कीनों, देखि अथिर जग सारो। 'भूधर' के प्रभु नेमि पियासौं, पाल्यौ नेह करारो री॥४॥ राजुल विनती कर रही हैं कि विलंब मत करो, मुझे वहाँ पहुँचा दो जहाँ जगत के स्वामी, मेरे प्रियतम (नेमिकुमार) हैं । मुझे अब कुछ भी नहीं सुहाता । सारा जगत अंधकारमय दीख रहा है । सूर्य के समान नेमिनाथ के उज्ज्वल मुख के दर्शन मुझे कब होंगे? जिसे देखे बिना मेरा हृदयरूपी कमल मुरझा रहा है । मैं शरीर की छाया के समान सदा उनके संग रहूँगी, वे मुझे छोड़ें तो भले ही छोड़ दें। बिना किसी अपराध के मुझे यह दंड मिला है, इसमें मेरा किसी भी प्रकार का दोष नहीं है, मेरा कोई वश नहीं है । इस प्रकार मोहवशीभूत होकर राजुल वियोग को भारी वेदना से ग्रस्त हुई। तत्पश्चात् ज्ञान-सूर्य के प्रकट होने पर मोह की गहन कालिमा नष्ट हो गई। तब उन्होंने इस संसार को अस्थिर जानकर प्रियतम का पग-पग पर अनुसरण किया अर्थात् जिन-दीक्षा धारण कर ली। भूधरदास कहते हैं कि इस प्रकार राजुल ने अपने प्रियतम भगवान नेमिनाथ के प्रति अतिशय प्रेम का निर्वाह किया। लाव - कर। पठाव - पहुँचाना। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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