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________________ बोधि - धन-कन-कंचन-राजसुख, सबहिं सुलभकर जान। दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ ज्ञान॥१२॥ जाँचे सुर तरु देय सुख, चिन्तत चिन्ता रैन। बिन जाँचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन ।। १३ ।। धर्म - १. अनित्य ( अधुव) - चाहे छत्रधारी राजा हो या कोई हाथी का सवार, सबको अपने समय पर अवश्य मरना है अर्थात् निश्चय ही मृत्यु सबकी होगी। २. अशरण - किसी के साथ अनुयायियों का समूह हो, चाहे सैन्यबल साथ हो, किसी को देवी-देवता का संरक्षण हो, चाहे किसी के माता-पिता व परिवारजन साथ हों, वे भी मरण के समय सहायी नहीं होते, वे भी मरण के समय आने पर जीव को रोक नहीं पाते रख नहीं पाते। ३. संसार - जीव धनविहीन होने पर निर्धनता के कारण दु:खी होता है और धनवान होने पर तृष्णा के कारण दुःखी होता है। इस प्रकार सारे संसार को ढूँढा पर इसमें सुख कहीं नहीं मिला। ४. एकस्त्र - जीव अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरता है । इसमें जीव का कभी कोई साथी-सगा या अपना नहीं होता। ५. अन्यत्व-जिस देह को हम अपने जन्म के साथ लाये थे वह देह भी अपनी नहीं है, साथ देनेवाली नहीं है तब अन्य कौन अपना हो सकता है? घर, सम्पत्ति और परिवार-सम्बन्धी - ये तो प्रत्यक्ष हो अपने से भिन्न हैं, पर हैं, ये अपने सगे कैसे हो सकते हैं? ६. अशुचि - हाड़ों (हड्डियों) के पिंजरेवाली देह ऊपर से चमड़ी की चादर से ढकी हुई है पर यह भीतर से जितनी घिनावनी (घृणास्पद) है उतनी घृणास्पद वस्तु इस जगत में अन्य कोई नहीं है। ७, आस्रव - मोहरूपी निद्रा के जोर से जगत के सब जन बेसुध हो रहे हैं, और संसार में भ्रमण कर रहे हैं ; कर्मरूपी चौर सब ओर व्याप्त हैं, वे जीव ११८ भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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