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________________ T का सर्वस्व लूट लेते हैं पर उसको सुधी नहीं रहती, भान नहीं रहता। ८. संबर ऐसे में सत्गुरु जगाते हैं पर जब मोह की निद्रा कम हो, कर्मों का उपशम हो, तब ही उसका कोई उपाय करने पर कर्मरूपी चोरों को आने से रोका जा सकता है। - ९. ज्ञानी दीपक लेकर उसे तर सायनारूपी तेल से पूरित कर ( तेल भरकर ) अपने अन्तःकरणरूपी घर का शोधन करे तब अनादिकाल से बैठे हुए कर्म चोर बाहर निकलते हैं। कर्मरूपी चोरों को बारह निकालने की यही एक विधि है। १०. निर्जरा पंच महाव्रत ( सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य ) का पालन, पाँच समिति (ईया, भाषा, एषणा, प्रतिष्ठापना, आदाननिक्षेपण) का आचरण और पाँच इन्द्रियों पर विजय से निर्जरा (कर्मों का क्षय) होता है, ऐसी दृढ़ धारणा करो । ११. लोक - आकाश में चौदह राजू ऊँचा पुरुषाकार (पुरुष के आकार ) लोक स्थित है। जीव ज्ञानरहित-सा होकर अनादिकाल से वहाँ ( लोक में ) भ्रमण करता चला आ रहा है । १२. बोधि - इस संसार में धन, धान्य, स्वर्ण, राजसुख सब सुलभ हो सकते हैं, परन्तु यथार्थ ज्ञान जो मुक्ति का साधक हैं वह मिलना / होना अत्यन्त कठिन है, दुर्लभ है। १३. धर्म- कल्पवृक्ष भी याचना करने पर सुख सामग्री दे देता है, फिर भी दिन-रात उस सहज-सुलभ सुख-सामग्री की चिन्ता घेरे रहती है । अर्थात् कल्पवृक्ष से सुख - सामग्री प्राप्त करने के लिए कुछ भी श्रम नहीं करना पड़ता केवल याचना करनी होती है, तब भी उसकी चिन्ता लगी रहती है पर 'धर्म' से बिना याचना व बिना चिन्ता किये ही सकल सुख मिल जाते हैं अर्थात् 'धर्म' बिना याचना व बिना चिन्ता के सकल सुख दे देता है । बिरिया = समय, अवसर । जाँचे याचें याचना करने पर । भूधर भजन सौरभ = ११९
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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