________________
हे साथिन ! वह चेतन मानता ही नहीं और अचेतन के साथ अधम कार्य करता है | दुर्मति (कुमति) मेरी एक नीची जाति की साथिन है, उसने मेरे प्रियतम आत्मा का चित्त लुभा रखा है। मेरी साथिन को कई बार समझाया है परन्तु उस हठी ने अपनी हठ के आगे उस सीख को अनदेखा किया है (हर लिया है) । हे मेरी सखी! कोई उपाय कर, प्रियतम से विरह की व्यथा अब सही नहीं जाती ।
हे साथिन ! श्रीजिन की शरण
इस पर वह सुरति सखी सुमति से कहती हैमें चल, वे उपकार करनेवाले हैं। सुमति कहती हैं वह मेरा प्रियतम चेत जाय, समझ जाय और घर वापस आ जाय तो मेरा भाग्य जग जाय ।
-
हे सखी! जब तक काल-लब्धि न आवे, तब तक मेरा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। फिर भी भूधरदास उचित सीख देते हुए कहते हैं कि मन को समझाने के लिए इस हेतु उद्यम प्रयत्न तो करना ही चाहिए ।
भूधर भजन सौरभ
-
११३