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कर विषयों का आनन्द भोगूं। वह नाना प्रकार के सपने संजोता है, कल्पनाएँ करता है और विचारता है कि धन प्राप्त कर संसार के सब सुख पा लूँगा और इस लालसा की पूर्ति के लिए यह उचित-अनुचित का विचार भी त्याग देता है, बस येन-केन प्रकारेण धन बटोरना ही उसके जीवन का ध्येय रह जाता है। यथा
चाहत है धन होय किसी विध, तो सब काज करे जिय राजी, गेह चिनाय करूँ गहना कछ, ब्याहि सुतासुत बांटिय भाजी, चिन्तत यो दिन जाहिं चले, जम आनि अचानक देत दगाजी, खेलत खेल खिलारि गये, रहि जाइ रूपी शतरंज की बाजी ।
कवि ने इस काम में अनात्मिक दृष्टि को दा कर आत्मिक दृष्टि स्थापित करने का प्रयास किया है।
पद-साहित्य - कवि ने स्तुतिपरक, अध्यात्म-उपदेशी, संसार-शरीर से विरक्ति उत्पादक, जिनेन्द्र के नाम-स्मरण के महत्त्व के प्रतिपादक, जीव की अज्ञानावस्था के सूचक आदि विषयों से सम्बन्धित पदों की रचना की है।
कवि भूधरदासजी के पद जीवन में आस्था और विश्वास की भावना जागृत करते हुए अध्यात्म-रस से सराबोर करते हैं।