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गुणस्थान भाव व्युच्छिति
10 सूक्ष्म (2) [ सराग सांपराय चारित्र, लोभ कषाय ]
1.
उपशांत
मोह
(2) औपशमिक
सम्यक्त्व, औपशमिक
चारित्र)
भाव
(22) (औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक
सम्यक्त्व, मति, श्रुत अवधि, मनःपर्यय ज्ञान
चक्षु, अचक्षु, अवधिदर्शन, क्षायोपशमिक पाँच
लब्धि, सराग चारित्र मनुष्यगति, शुक्ल
लेश्या, लोभ कषाय, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व]
(21) (औपशमिक सम्यक्त्व, औपशमिक चारित्र, क्षायिक
सम्यक्त्व, मति, श्रुत
अवधि, मनः पर्यय
ज्ञान, चक्षु, अचक्षु
अवधि दर्शन,
क्षायोपशमिक पाँच
लब्धि, मनुष्य गति, शुक्ल लेश्या, अज्ञान असिद्धत्व, जीवत्व भव्यत्व)
(27)
अभाव
|(31) [ औपशमिक janika, unita, v लब्धि, केवलज्ञान के बल दर्शन, क्षायिक चारित्र, कुमति, कुश्रुत, बु अवधि ज्ञान, क्षायोपशमिक सम्यकत्व, संयमासंयम, तिर्यञ्च, नरक, देव गति कृष्ण, नील कापोत, पीत, पद्म लेश्या तीन लिंग, क्रोध, मान, माया कषाय, असंयम
मिथ्यात्व, अभव्यत्व]
(32) { क्षायिक पांच लब्धि, केवलज्ञान के वल दर्शन, क्षायिक चारित्र, कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, सराग चारित्र, संयमासंयम, तिर्यच,
नरक, देव गति, कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म लेश्या, तीन लिंग चार
कषाय, असंयम मिध्यात्व, अभव्यत्व }