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गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति
( 3 ) [ पीत पद्म
7.
अप्रमत्त लेश्या,
संयत
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ]
1. अपूर्व- (0)
करण
भाव
( 31 ) [ औपशमिक सम्यक्त्व क्षायिकसम्यक्त्व मति,
श्रुत, अवधि, मन:पर्यय जार, क्षुदर्शन अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन,
क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, क्षायोपशमिक,
सम्यक्त्व, सराम चारित्र, मनुष्यगति, पीत, पद्म शुक्ल लेश्या, 3 लिंग, चार
कषाय, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व]
(28) औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यय
ज्ञान, चक्षु, अचक्षु, अवधि दर्शन, क्षायोपशमिक पाँच
लब्धि, सराग चारित्र,
मनुष्य गति, शुक्ल
लेश्या, तीन लिंग,
चार कषाय, अज्ञान, असिद्धत्व जीवत्व,
भव्यत्व]
(25)
अभाव
(22)
(औपशमिक
चारित्र, क्षायिक पाँच लब्धि के वलज्ञान,
केवलदर्शन क्षायिक चरित्र, कुकुश्रुत कुअवधि ज्ञान
संयमासंयम, तिर्यञ्च गति नरक गति, देव गति, कृ
ष्ण, नील, कापोत लेश्या, असंयम मिथ्यात्व, अभव्यत्व ]
(25) (औपशमिक चारित्र क्षायिक पाँच लब्धि, केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक चारित्र, कुमति, कुश्रुत, कु अवधिज्ञान, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व संयमासंयम, तिर्यश्च, नरक, देवगति, कृष्ण नील, कापोत पीत, पद्म लेश्या, असंयम मिध्यात्व, (अभव्यत्व)