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5.
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव । अभाव
[औपशमिक 22 [औपशमिक चारित्र देशविरत संयमासयम, |सम्यक्त्व, क्षायिक |क्षायिक पाँच लब्धि, तिर्यञ्च गति] सम्यक्त्व, मति, श्रुत, | केवलज्ञान, केवलदर्शन,
अवधि ज्ञान, चक्षुदर्शन झायिक चारित्र, मनः अचक्षुदर्शन, अवधि पर्यय ज्ञान, कुमति, दर्शन, क्षायोपशमिक कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, पाँच लब्धि,
सराग चारित्र, नरक गति, |क्षायोपशमिक देव गति, कृष्ण, नील सम्यक्त्व, संयमासंयम | कापोत लेश्या, असंयम, मनुष्य मति,तिर्यञ्च | मिथ्यात्व, अभव्यत्व] गा। पासपद शुक्ल लेश्या,तीन लिंग, चार कषाय, अज्ञान, असिवत्व, जीवत्व, मव्यत्व]
6. प्रमत्त संयत
or
(31) [औपशमिक 22 [औपशमिक चारित्र सम्यक्त्व, क्षायिक क्षायिक पाँच लन्धि सम्यक्त्व, मति श्रुत, | केवलज्ञान, केवल दर्शन, अवधि, मनः पर्यय क्षायिक चारिष कुमति, शान, चक्षु दर्शन, कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, अचक्षुदर्शन, अवधि संयमासंयम, तिर्यश्रगति दर्शन, क्षायोपशमिक नरकगति, देवगति, पाँच लन्धि,
कृष्ण, नील, कापोत क्षायोपशमिक लेश्या, असंयम, सम्यक्त्व, सराग | मिथ्यात्व, अभव्यत्व] चारित्र मनुष्यगति, पीत, पद्म, शुक्ल लेश्या, तीन लिंग, चार कषाय, अज्ञान, असिन्दत्व जीवत्व भव्यत्व
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