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इसके बाद अपने मत से प्रकट हुए मिथ्यात्व को कहा - जाता है । श्वेताम्बर मत नाम वाले, इसका विधान जिनचन्द्र ने किया।
सट्त्रिशे शतेऽब्दानां पृते विक्रमराजनि ।
सौराष्ट्र वल्लभीपुर्यामभूतत्कथ्यते मया ॥१८॥ विक्रम राजा की मृत्यु के १३६ (एक सौ छत्तीस) वर्ष बाद सौराष्ट्र में वलभी नगरी में उसकी उत्पत्ति है, जिसके विषय में मेरे द्वारा कहा जाता हैं।
उज्जयिन्या पुरी ख्याता देशेऽस्त्यवन्तिकाभिधे ।
तत्राष्टाड.गनिमित्तज्ञो भद्रबाहुमुनीश्वरः ॥१८॥ __ अवन्ती नामक देश में उज्जयिनी नामक पुरी विख्यात है । वहां पर अष्टाङ्ग निमित्त के धारी भद्रबाहु मुनीश्वर हुए ।
निमित्तज्ञानतस्तेन कथितं मुनिजनान् प्रति ।
प्रभवत्यत्र दुमिक्षं वर्षद्वादशकावधि ॥१०॥ निमित्त ज्ञान से उन्होंने मुनिजनों से कहा कि यहां बारह वर्ष का दुर्भिक्ष होगा।
निशम्येति वचस्तस्य नान्यथा स्यात्कदाचन।
सर्वे स्वगणोपेताः प्रतिदेशं विनिर्ययुः ॥११॥ यह बात सुनकर, उनके (भद्रबाहु के) वचन कदाचित् अन्यथा नहीं होते, ऐसा जानकर सभी अपने-अपने गणों के साथ अन्य देशों की ओर निकल गए।