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२७ कर्तृत्वं द्विविधं वस्तुकर्तृत्वं वैकियोद्भवम् ।
प्राद्य घटादि कर्तृत्वं द्वितीयं देवनिर्मितम् ॥१०८॥ कर्तृत्व दो प्रकार का है-वस्तुकर्तृत्व और बैक्रियोद्भव । आदि का कर्तृत्व घटादिका है, द्वितीय देवनिर्मित है।
पर्यायानां घटादीनां कौतस्कुतीह कर्तृता।
विनाभूतैः पृथिव्यायघटनाया असंभवात् ॥१०॥
घटादि की पर्यायों की कर्तृता कहाँ से होगी ? पृथिव्यादि भूतों के बिना रचना असंभव है।
न यान्ति मनसा क विवर्णाः पाथिवा अपि।
कथं कस्मात्समानीता तधोग्या जीवसंहतिः ॥११०॥ पार्थिव वस्तुओं को भी मन से विवर्ण नहीं कर सकते । पृथ्वी पर रहने के योग्य जीवों के समुदाय कैसे और कहाँ से . लाए गए।
समुत्पादोंऽखिलार्थानां मानसो हि प्रजायते।
न ह्यदृष्टपदार्थानां घटना क्वापि दृश्यते ॥११॥ पदार्थों की उत्पत्ति यदि मन से ही होती तो अदृष्ट पदार्थों की रचना कहीं दिखाई नहीं देती है ।
यदि क्रियिकं विश्वं विधाशक्त्या विनिर्मितम् ।
अवस्तुभूतसम्बन्धान्न भनेतच्चिरन्तनम् ॥११२॥ विद्या शक्ति से निमित्त विश्व यदि वैक्रियिक है तो अवस्तुभूत सम्बन्ध से वह चिरस्थायी नहीं होगा। १ पर्यायाणि ख.। २ नायान्ति ख.। ३ पर्यायाः ख. ।