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१४० रस, रसायन, स्तम्भन, शाकिनी तथा भूतों का निग्रह, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेष तथा सांप के विष को दूर करना ।
इत्यादिषु प्रवर्तन्ते निष्ट्रपाऐहिकाशयाः ।
यतित्वं जीवनोपायं भवेत्तेषां विनिश्चितम् ॥६३३॥ इत्यादि में लज्जाहीन इस लोक की आशा रखने वाले प्रवृत्त होते हैं । उनका यतिपना निश्चित रूप से जीवनोपाय होता है।
निःशल्या निरहंकारा निर्मोहा मदविच्युताः।
पक्षपातारिसंत्यक्ता निष्कषाया जितेन्द्रियाः ॥६३४॥
जो शल्यरहित हैं, अहंकार रहित हैं, मोह मद से रहित हैं, पक्षपात रूपी शत्रु को जिन्होंने छोड़ दिया है, जो निष्कषाय तथा जिनेन्द्रिय हैं।
अन्तर्बाह्य तपोनिष्ठाश्चारित्रवतभाजिनः ।
दशधर्मरताः शान्ता ध्यानाध्ययनतत्पराः ॥६३५॥
जो अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग तप में निष्ठा रखते हैं, चारित्र और व्रत के पात्र हैं, दश धर्मों में रत हैं, शान्त हैं तथा ध्यान और अध्ययन में तत्पर हैं ।
भेदाभेदनयाकान्तरत्नत्रयविभूषिताः।
इत्यादिगुणभूषाढ्या जगद्वन्द्या यतीश्वराः ॥६३६॥ जिन्होंने भेद और अभेद नय को पार कर लिया है तथा जो रत्नत्रय से विभूषित है इत्यादि गुण रूपी भूषा से व्याप्त जगद्बन्ध यतीश्वर हैं। १ द्यषु । २ भाजनाः ख.।