________________
१२१ दूसरा कौपीन संयुक्त व केशलुञ्चन करता है । शौच का उपकरण कमण्डलु और मयूरपिच्छ को छोड़कर अन्य परिग्रहों का त्यागी होता है।
मुनीनामनुमार्गेण चर्याय सुप्रगच्छति ।
उपविश्य चेरभिक्षां करपात्रेऽङ्गसंवृतः ॥५४६॥
वह मुनियों के जाने के बाद उसी मार्ग से चर्या के लिए जाता है। वह अपने अङ्ग को ढ़ककर बैठकर भिक्षाचरण करता है।
नास्ति त्रिकालयोगोऽस्य प्रतिमा चार्कसम्मुखा।
रहस्यग्रन्थसिद्धान्त श्रवणे नाधिकारिता ॥५४७॥ वह तीनों काल में मुनि के समान योग धारण नहीं कर सकता है और सूर्य के सामने प्रतिमायोग भी धारण नहीं कर सकता है। सिद्धान्त के रहस्यपूर्ण ग्रन्थों के श्रवण का यह अधिकारी नहीं है।
वीरचर्या न तस्यास्ति वस्त्रखण्डपरिग्रहात् ।
एवमेकादशो गेही सोत्कृष्टः प्रभवत्यसौ ॥५४८॥ वस्त्रखण्ड को स्वीकार करने के कारण उसकी वीरचर्या नहीं है । इस प्रकार ग्यारहवीं प्रतिमा वाला उत्कृष्ट श्रावक है।
उद्दिष्टत्यागप्रतिमा। १ सोऽवगच्छति।