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खनित्रविषशस्त्रादेर्दानं स्याद्वधहेतुकम् । तत्यागोऽनर्थदण्डानां वर्जनं तत्तृतीयकम् ॥४६१॥
खोदने के उपकरण, विष, शस्त्र आदि का दान वध का हेतु होता है, उसका त्याग करना अनर्थदण्ड त्याग रूप तृतीय व्रत होता है ।
सामायिकं च प्रोषधविधि च भोगोपभोग संख्यानम् । प्रतिथीनां सत्कारो वा शिक्षाव्रतचतुष्कं स्यात् ॥४६२ ॥
सामायिक, प्रोषधविधि, भोगोपभोगसंख्यान तथा प्रतिथियों का सत्कार । ये चार शिक्षाव्रत होते हैं ।
सामायिकं प्रकुर्वीत कालत्रये दिनं प्रति । श्रावको हि जिनेन्द्रस्य जिनपूजापुरःसरम् ॥४६३॥
श्रावक को जिनपूजापूर्वक दिन में तीन बार सामायिक करना चाहिए |
कः पूज्यः पूजकस्तत्र पूजा च कीदृशी मता । पूज्यः शतेन्द्रवन्द्याह्निनिर्दोषः केवली जिनः ॥४६४॥
पूज्य कौन है ? पूजक कौन है ? पूजा कैसी मानी गई है ? सौ इन्द्रों के द्वारा जिनके चरणों की वन्दना की जाती है, ऐसे निर्दोष केवली जिन पूज्य हैं ।
भव्यात्मा पूजकः शान्तो वेश्यादिव्यसनोज्झितः । ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः स शूद्रो वा सुशीलवान् ॥४६५ ॥
१ श्रावण क. । २ हीति नाति क- पुस्तके | ३ ' सच्छूद्रो वा' इति सुभाति । ४ दृढती ख ।