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स्थूलहिंसानृतस्तेयपरस्ती चाभिकांक्षता । अगुव्रतानि पंचैव तत्त्यागात्स्यादणुवत्री ॥४५१॥
स्थूल हिंसा, अमृत, स्तेय और परस्त्रो की अभिलाषा का का त्याग ये पाँच अणुव्रत होते हैं। इनके त्याग से अणुव्रती होता है।
योगत्रयस्य सम्बन्धात्कृतानुमतकारितः।
न हिनस्ति नसान स्थलहिंसावतमादिमम् ॥४५२॥ मन, वचन, काय के सम्बन्ध से कृत, कारित, अनुमोदना से त्रस जीवों की हिंसा न करना पहला स्थूल अहिंसावत है ।
न वदत्यनतं स्थलं न परान वादयत्यपि ।
जीवपीडाकरं सत्यं द्वितीयं तदणुव्रतम् ॥४५३॥
जो जीव पीड़ाकारी स्थूल झूठ नहीं बोलता है और न दूसरे से बुलवाता है । उसके द्वितीय सत्याणुव्रत होता है ।
प्रदत्तपरवित्तस्यः निक्षिप्तविस्मृतादितः।
तत्परित्यजनं स्थूलमचौर्य व्रतभूचिरे ॥४५४॥ न दिए हुए धन का, धरोहर के भूल जाने आदि का परित्याग करना स्थूल अचौर्यव्रत कहलाता है ।
मातृवत्परनारीणां परित्यागस्त्रिशुद्धितः । ___ स स्यात्पराङ्गनात्यागो गृहिणां शुद्धचेतसाम् ॥४५५॥
मन, वचन, काय की शुद्धिपूर्वक माता के समान परस्त्री का त्याग करना शुद्ध चित्त वाले गृहस्थों का परस्त्री त्याग व्रत होता है। १ ति ख.।