________________
88
देशवत नामक पंचम गुणस्थान में पूर्वोक्त लक्षण वाले तीन भाव विद्यमान रहते हैं।
प्रत्याख्यानोदयाज्जीवो नो धत्तेऽखिलसंयमम् । तथापि देशसंत्यागात्संयतासंयतो मतः॥४४२॥
प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से जीव सकल संयम को धारण नहीं करता है । तथापि एक देश त्याग से संयतासंयत माना गया है।
विरतिस्त्रसघातस्य मनोवाक्काययोगतः।
स्थावराङ्गिविधातस्य प्रवृत्तिस्तस्य कुत्रचित् ॥४४३॥ संयता-संयत गुणस्थान वाला त्रस जीवों की हिंसा से मन, वचन, काय से विरत होता है। उसकी क्वचित स्थावर जीवों के विधान की प्रवृत्ति होती है।
विरताविरतस्तस्माद्भण्यते देशसंयमी।
प्रतिमालक्षणास्तस्य भेदा एकादश स्मृताः ॥४४४॥ विरताविरत होने से देशसंयमी कहा जाता है । प्रतिमा लक्षणों के अनुसार रसके ग्यारह भेद माने गये हैं ।
प्राद्यो दर्शनिकस्तत्र व्रतिकः स्यात्ततः परम् । सामायिकव्रती चाथ सप्रोषधोपवासकृत् ॥४४५।। सचित्ताहारसंत्यागी दिवास्त्रीभजनोज्झितः । ब्रह्मचारी निरारम्भः परिग्रहपरिच्युतः ॥४४६॥
१ वरम् ख.।