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________________ भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व कृतित्व अपना सन्देश चन्द्रमा के माध्यम से नेमिनाथ के पास भेजती हैं। सर्वप्रथम चन्द्रमा से अपने उद्देश्य के बारे में निम्न पन्नों में वर्णन करती है विनय करी राजुल' कहे, चन्दा बीनतई। अब धारो रे । ज गारजाई वीजे, या जहां छ प्राण आधार रे ।। मगने गमन ताहरू' ना, चन्दा अमिव वरणे अन्नन्त रे । पर उपगारी तु मनो, चन्दा वलि बलि बीनदू संन रे ।। राजुग ने इसके पश्चात् भी चन्द्रमा के सामने अपनी यौवनावस्था की दुहाई । दी तथा दिरहग्नि का उसके सामने वर्णन किया । विग्ह तणां दुख दोहिता, वंदा ते किम में सहे बाप रे । जल बिना जम मछली, बंदा ते दुख में बाय रे ॥ राजुल अपने सन्देश वाहक से कहती है कि यदि कदायित नेमिकुमार वापिस चाने माने तो यह उन के पानमन पर वह पूर्ण शृगार करेगी । इस वर्णन में कार ने विभिन्न यगों में पहिने जाने वाले प्राभूपरषों का अन्छा वर्णन किया है। ३. सूखड़ी यह ३७ पदों की लघ रचना है, जिसमें विविध व्यंजनों का उल्लेख किया किया गया है कवि को पाकशास्त्र का अच्छा ज्ञान था । "सूखड़ी" से तकालीन प्रचलित मिठाइयों एवं नमकीन चाय सामग्री का प्रती तरह परिचय मिलता है । शान्तिनाथ के जन्नावसर पर विधने प्रकार की मिठाइयां आदि बनाई गई थी-इसी प्रसंग को बताने के लिए इन व्यंजनी का नामोल्लेख किया गया है । एक वर्णन देखिये-- जलेबी खाजला' पूरी, पतासां फीगी संजूरी। दहीपरा पीणी माहि. साकर भरी ।।६।। सकरपारा सुहाली, तल गयडी मारली 1 थापड़ास्यु' थीणु पीर, प्राल जीरली ।।५।। गरकीने चादखःनि, बोट ने दही बड़ा सोनी । बाबर घेवर श्रीसो, वानेक वांनी ॥६॥ 4. आदीश्वररणी विनति इसमें प्रादिनाथ भगवान का स्तवन तथा पांचों वाल्याणकों का वर्णन किया गया है । रचना सामान्य है।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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