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भट्टारक शुभचन्द्र
इसमें मादिनाथ के पन्धकल्याणकों का वर्णन किया गया है पद्य संख्या २१ है। रचना सामान्य है।
भाबोरवरनु मात्र कल्याणक गीत
इस प्रकार भट्रारक अभयचन्द्र ने अपनी लप रचनाभी के माध्यम से जो महती सेवा की थी वह सदेव अभिनन्दनीय रहेगी।
५०. महारक शुभचन्द्र
भद्रारक प्रभयचन्द्र के पपत्रात शुभचन्द्र भट्टारका गद्दी पर बैठे । संवत् १७२१ की ज्येष्ट बुद्धि प्रतिपदा के दिन पोरदादर में एका विष उत्मक किया गया पीर उममे शुभचन्द्र को पूर्ण विधि के साथ भट्टारक गद्दी पर अभिषिक्त किया गया। पं. श्रीगान ने शुभचन्द्र हमश्री निधी है उसमें शुभचन्द्र अभिषिक्त के भट्टारक पद पर अभिषेक हान से पूर्व तक का पूरा वृतान्त दिया हुया है ।
पणुभ चन्द्र का मन्म गुजरात प्रदेश के जलसेन नगर में दुर्गा जहां गत एवं मन्दिर तथा नर कार भवन से । यही बाड़ वंगा के शिरोमणि हीरा धावक थे । माणिकदे उनकी पत्नी का नाम था । बचपन से ही बालक व्युत्पन्नमति थे उसका विद्याध्ययन यी मो. विशेष गान था, इसलिए व्याकरण, तर्कशास्त्र, पुराण एवं छन्द - का गहरा अध्ययन किया । मप्ट सहनी जंग कटिन प्रन्यों को पढ़ा । प्रारम्भ में उसका नाम नबनाम था लेकिन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने पर उसका नाम सहेजसागर रखा गया और भट्टारक बनने पर वे पामचन्द्र नाम से प्रसिद्ध हुये ।
शुभचन्द्र शरीर से अतीव सुन्दर थे। योपाल कवि ने उनकी सुन्दरता का । निम्न प्रकार वर्णन किया है---
नाशा शुक चंची सम सुन्धर, मघर प्रवाली वन्न । रक्तवर्ण जि पक्ति दिमित, निरखता यानाद रे ॥१॥
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1. सभी संवत सरतर एक बोरसे बली जेष्ठ वदी प्रतिपद वीवसे
श्री पोरबन्दर मोहोय हवा, मल्या चतुर्विध संघ ते मघा नवा 2. हड़पंश हिरणी होरर' सम सोहे मन गो धन्य
वस मन रंजक मारिणको शुभ बायो सुन्दर तन्न रे मालपणे युधित विलक्षए विद्या बखद निधान । नागम जिन भक्ति करें एह जिन साइन बहतान रे ।।५।।