________________
७
सकेत हैं। वे 36 वर्ष तक मट्टारक पद पर रहे पोर मारे प्रदेग में मरने हजारों प्रशंसकों एवं भक्तों का समूह इकट्ठा कर लिया।
प्रप्रयचन्द के प्रब तक निम्न रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं - ११) वासपूज्यनी धमाल (३) गीत (३) चन्दा नौत
(४) सूखडी [५) पद्मावती गीत (६) शान्तिनाथजी विनती (७) प्रादीश्वरजी विनती (4) पञ्चकाल्यागाना गीत १५) बलभद्र गीत (१० लांछन गीत (११) विभिन्न पद ।
भट्टारक अभयचन्द्र की विद्वता एवं शास्त्रों के ज्ञान को देखते हुए उक्त त्तियां बद्त कम है इसलिये एनभी उनकी किमी बड़ी वृति के मिलने की अधिक संभावना है लेकिन इसके लिए रागढ़ प्रदेश एवं गुजरात के शास्त्र भवारों में खोज की मावश्यकता है। इसके अतिमिक यह भी सभव है कि अभय बन्द ने साहित्य निर्माण के स्थान पर में ही प्रचार प्रचार पर अधिक जोर दिया हो।
मभयनन्द की 1. सभी रवनाप नाप वृतियां हैं । यद्यपि काव्यत्व भाषा एवं पाली की हाट में - उन्ध स्तरीय रचना नहीं है लेकिन ताका लीन रामाज की मांग पर ये पत्र लिखी गयी थी इसलिय इन वि का काध्य बंभव एवं सौष्ठय प्रदर्शन होके स्थान पर प्रचार-प्रसार का अधि लक्ष्य रहा था । कुछ प्रमुख रचनाय का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है
१-पासपूज्यनीषभाल
१. पद्यों में २०वें तीर्थ कार वासुपूज्य स्वामी के माल्याराकों का वर्णन दिया गया है। धमाल में गूरत नगर का उल्ने जो गंमत्र :: वहां वै मतिर में दासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा स्तवन के कारण होगा ।
सूरत नगर गानु' जगईस, सकल गुरासर नामें गोस । मूलसंघ मण्डल मनोहर. मुदत्तन्द्र करुणा भण्डार ||६|| तेह पाटे उदयों वर हश, अभय चन्द्र धन हूं वंश ।। ले गोर गाये एह सुभास, भणता सुणता स्वर्ग निवास ॥१०॥
२- मागीत
इस गीत में कालीदास के मेघदूत के विरही यम की भाति स्वयं राजुल