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________________ संपादकीय अब यह लगभग निर्विवाद हो गया है कि हिन्दी-साहित्य के विकास का अध्ययन अनुसंधान जैन साहित्य के अध्ययन के बिना संभव नहीं है। इस शताब्दी के तीसरे दशक में जब प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य का इतिहास लिख रहे थे तब, और प्राञ जब भी कोई साहित्येतिहास के लेखन का प्रयत्न करता है तब उसके लिये यह असंभव ही होता है कि वह जन साहित्य की अनदेखी करे और इस क्षेत्र में अपने कदम आगे रखे । राजस्थान कहने को मरुभूमि है; किन्तु यहाँ रस की जो अजन/मधुर धारा प्रवाहित हुई है, वह अन्यत्र देखने को नहीं मिलसी। जैन साहित्य की दृष्टि से राजस्थान के पास्त्र-भण्डार बहुत समृद्ध माने जाते हैं। इन भण्डारों में से बहुत सारे ग्रन्थों को तो सामने लाया जा सका है, किन्तु बहुत सारे हमारी असावधानी/प्रमाद के कारण नष्ट हो गये हैं। यह नष्ट दुमा या विलुप्त साहित्य हमारे सांस्कृतिक और आंचलिक रिक्त की दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण श्रा, यह कह पाना सो संभव नहीं है; किन्तु जो भी पत-दरपतं उघडता गया है, उससे ऐसा लगता है कि उसके बने रहने से हमें हिन्दी साहित्य के विकास की कई महत्व की कड़ियां मिल सकती थीं। इस दृष्टि से डॉ० करतूरचन्यः कासलीवाल का प्रदेय उल्लेखनीय और अविस्मरणीय है। जैसे कोई नये टापू या द्वीप की खोज करता है और वहां के स्वारे खनिज-धन की जानकारी देता है ठीक वैसे ही डin कासलीवाल जैसे मनीषी ने जैन शास्त्रागारों में जा-जा कर वहाँ की दुर्लभ यस्तव्यस्त बहुमूल्य पाण्डुलिपियों को सूचीबद्ध किया है और दिगम्बर जन प्रतिपाय क्षेत्र श्रीमहावीरजी से प्रकाशित कराया है। ये सूचियां न केवल जैन साहित्य के लिए अपितु संपूर्ण भारतीय बाङमय के लिए बहुमूल्य धरोहर है । पूरा वाम इतनी भारी-भरकम है कि इसे किसी एक या दो आदमियों ने संपन्न किया है इस पर एकाएक भरोसा करना संभव नहीं होता तथापि यह हुया है और बड़ी सफलता के साश्च हुआ है । अतः हम स हज ही कह राकते हैं कि द्धा कासलीवाल की भूमिका जैन साहित्य यौर हिन्दी साहित्य के मध्य सीधे संवन्ध बनाने की ठीक वैसी ही है जैसी कभी वास्कोडिगामा की रही थी, जिसने 15 वीं सदी के अन्त में भारत प्रोर युरोप को समुद्री मार्ग से जोड़ा था। हिन्दी साहित्य की भांति ही हिन्दी भाषा की संरचना तथा उसके विकास का अध्ययन भी प्राकुरा अपनश कीअनुपस्थिति में करना संभव नहीं है। ये दोनों भाषा
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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