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चंद्र वदली मृग लोचनी मोचनी बंजन मोन | बाग जीत्यो बेहिं श्रेणिय मधुकर दीन युगल गल दीये सशि, उपमा नाशा कीर अधर विक्रम सम उपता दंतनू निर्मलनीर ॥
फाग में ५८ प है जिनमें राजुल नेमि का जन्म से लेकर निर्वाण तक की घटना का वर्णन किया गया है । फाग में भी राजुन की विरह वेदना को सशक्त शब्दों में व्यक्त करने का कवि का ध्येय रहा है। और उसमें कवि पूर्णतः सफल भी रहे हैं ।
फाग का रचना स्थान हांसोट नगर रहा था जो गुजरात का प्रमुख सांस्कृ तिक नगर था । काग की राग केदार है । ५
अन्य कृतियां
बाहरमासा
"भट्टारक रतनकीति की यह कृति भी वही रचनाओं में से
हैं। इनमें भिके वियोग में राजुल के वार महिने कैसे व्यतीत होते हैं इसका सुन्दर वर्णन किया गया है। कवि का बारहमासा जेठ मास से प्रारम्भ होता है तथा प्रत्येक महिने का वह विस्तृत वर्णन करता है यह राजुल के विरही जीवन के प्रत्येक मनोगत भावों को उभारना नाहता है जिसमें वह पर्याप्त रूप से सफल हुआ है।
१.
आषाढ मान प्राते ही पति का विरह और भी बताने लगता हैं। दादुर क्या बोलते हैं मानों प्राण ही निकलते हैं । धनी वर्षा होती हैं। अंधेरी सत्रियां होती हैं तोप की बाट जोहते जोहते यांखों में पालू श्रा जाते हैं। पपीहा पिउ पिच बोलने लगता है तो राजुल कैसे धेयं धारण कर सकती है । वृक्ष भी बास में हवा के झोंको के साथ जब हिलते हैं तो वे परसर में बात करते हुए लगते हैं। और जब सर अपने पंखों को फैलाकर मी के मन को प्रसन्न करता है तो मन अधीर हो जाता है । जब प्रकाश में बिजली सबक-बक कर सकने लगती है तो उसकी कोमल काया उसे कैसे सहन कर सकती है। बिना पिया के वह अकेली कंसे रह सकती है।
तिमतिम नाहनो नेह साले प्रापादि अंगात | दादुर बोले प्राण सोले बरसाते विशाल
नेमि विलास उल्हास स्यु, जो गासे नर नारि रतनकीरति सूरोवर कहे, ते लहे सौख्य अपार ॥ १ ॥ हांसोट माहि रचना रखी, फाम राग श्री जिन जुग धन जाये, सारदा भर दातार ।। २ ।
केदार