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________________ भट्टारक रत्नकीति एवं कुमुदचन्द्र : व्यकिल एवं कृतित्व २०. रथ डो नीहानती रे पूति सहे साधन नी वाट २१. सखी को मिलानो नेम नरिंदा २२. सखी री नेम न जानी पीर २३. वदेहं जनता शरण २४. धीराग गावत सूर किन्नरी २५. श्रीराग गावत सारंगधरी २६. प्राजू पानी प्राय नेग नो गाउरी २७. बली बंधो का न बरज्यों अपनो २८. प्राजो रे मवि सागलियो बहालो रथि परि हडि प्राय रे २६. गोडि ची जुर र जुन रानी रिवर जावे रे ३०. प्राचो सोहामणीसुन्दरी वन्द रे पूजिये प्रथम जिणंद रे ३१. ललना समुद्रषिजय सुत सम रे यदुपति ने मकुमार हो ३२. मुरिग समिरजु रहे है। हप । माम जान से ३३. सशधर वदन साहामगि रे, गजगामिनी गुण पाल रे ३४. वरशारमी नगरी नो राजा अश्वगन' का गुणधार ३५. श्रीजिन सनमति अवतरया चा रंगो रे ३६. नेम जी दयालुहारे तू तो यादव कुल सिणगार ३७. कमल वदन कपणा निलयं ३८. सुदर्शन नाम के मैं वारि अन्य कृतियां ३९. महाबीर गीत ४०. भेमिनाथ फागु ४१. नेमिनाथ का ब'हरामा ४२. शिद्ध धूल ४६, अलिभदनी बीनती ४४. नेमिनाथ बीनती उक्त नामांकित पदों के प्रतिकि रलकीति का सब। रचना "मिनाय फागु" है। इस फाग म भगवा पिनाथ एवं राजुल का जीरन वाणा हैं। 'फागु' नामांकित इस कृति में कवि यूगार सग अधिक बहे है और प्रत्येक वर्गन को श्रृगार प्रधान बना दिया है । राजुन की सुन्दरता का वर्णन करते हुए कवि ने उसे एक से एक सुन्दर उपमा में प्रस्तुत किया है। ऐसी ही चार पंक्तियां पाठकों के अवलोकनार्थ प्रस्तुत की जा रही है।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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