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________________ भट्टारक रत्नकीति महाकवि तुनो दास जमी शंनी को अपनाया है। ऐसा मालूम होता है कि महाकवि सुलसी एव सूरदास ने राम एव कृष्ण भक्ति की जो गंगा बहायी थी उससे रत्नकीर्ति अपने आपको नहीं बना पाये और वे भी राम भक्ति में समा गये और 'बंवह जनता शरण' तथा कम न वदना कळरणा निलयं जमे कुछ मुन्दर भक्ति पूर्ण पद लिखकर जन गलस को राग भक्ति में डुबो दिया । कवि का एक पद देखिये वदह जनता शरण दशरथ नंगन दुरति निकेंदन, राम नाम शिव गर ।।१।। अमल ना अनादि अविकल, रहित जनम जरा मरनं । बलख निरजन धुन मन रजन, संवक जग अधनत हरनं ।।५।। काम करु; रस रिस, सुर नग्नायक गुत चरण । रतगकीरति कहे सेवो सुन्दर भवजघि सारन तरनं ।।३।। रतनीति त अब तक निम्न पद एवं कृतियां प्राप्त हो चुकी है। १. मारेंग ऊपर गारंग मोहे सारंगत्यासार' जी २. सुरण रे नेमि मामलोया माहेन क्यों बन योरी जाय ३. सारंग सजी सारंग पर ग्रावे ४, वृषभ नि मेत्रो बहु प्रकार ५. सश्री मान घटाई गता ६. नेम तुम कंगे वो गिरिनार ७. कारण काय पीया को न जा. ८. राजूल गेहे गेमी जाय १. गम जाये रे गोही गवना १५. नव जिरि वरज्यो न माने गोरी ११. नेमि तुम भाकी धरिय घरे १२. राम कहे यावर जया नोनी भारी १३. दशानन बीमती पाहत होड दाम १४. वयो न माने नपान निटोर १५. भीलने का कारया पगाथ १६. सरद की ग्यनि सुदर सोडात १७. गुन्दरी माल मिजार करे गोरी १८. कहा थे मंडन का कजरा नैन भम १६. सुनो मेरी रायनी धन्य या रयनी रे
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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